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बैन सिद्धान्त दीपिका
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सम्यग्दृष्टि-सातिशय मिथ्यादृष्टि से असंख्य गुण पधिक निर्जरा देणविरत–सम्यगदष्टि सर्वविरत-देशविरत अनन्तवियोजक-सर्वविरत दर्णनमोहन -अनन्त वियोजक उपशमक-दर्शनमोहलपक उपशान्तमोह-उपशमक क्षपक-उपशान्तमोह क्षीणमोह-क्षपक जिन-क्षीणमोह
१६. पहले जोवस्थान से लेकर दमवें जीवस्थान (मृत्ममंपराय) तक
होने वाले बन्ध को मापयिक बन्ध कहा जाता है। ___कपायसहित जीव के शुभ या अशुभ कर्म का बन्ध होता है वही सांपरायिक बन्ध है। नो जीवस्थान तक सान कर्मों का वन्ध होता है और आयुष्य वन्ध के ममय तोमरे जीवम्थान को छोड़कर सातवें जीवस्थान तक आठ कर्मों का बन्ध होता है। दसवें जीवस्थान में आयुष्य और मोहकर्म को छोड़कर शेप छह
कर्मों का बन्ध होता है। २०. वीतराग के जो कर्मबन्ध होता है, उसे ईपिथिक कहते हैं।
जिस बन्धन का मार्ग योग होता है, उसका नाम ईर्यापथिक है। वह बन्ध मानवेदनीय का ही होना है।
उसका कालमान दो समय का होता है।
१. अपूर्वकरण के अन्तिम समय में विद्यमान विशुद्ध मिथ्यावृष्टि । २. अनन्तानबन्धी का वियोजन करने वाला।