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जैन सिदान्त दीपिका
११. जो अनिवृत्ति और बादर कषाय युक्त होता है, वह अनिवृत्तिबादर कहलाता है।
प्रस्तुत जीवस्थान में समसमयवर्ती जीवों की परिणामविशुद्धि सदृश ही होती है।
उक्त दोनों जीवस्थानों में दशवें जीवम्थान की तुलना में कपाय वादर होता है।
१२. श्रेणि-आरूढ के दो प्रकार हैं :
१. उपशमक २. क्षपक
निवृत्तिबादर मे दो श्रेणियों का प्रारम्भ होता है। प्रथम श्रेणि का नाम उपशमणि है। उनका आरोहण करने वाला व्यक्ति मोहकर्म की प्रकृतियों को उपशान करता हुआ आगे बढ़ता है। दूसरी क्षपकणि है। उसका आरोहण करनेवाला मोहकर्म की प्रकृतियों को क्षीण करता हुआ आगे बढ़ता है।
जिसमें संचलन का मूक्ष्म लोभांश विद्यमान रहता है. उम मूक्ष्मसंपराय कहा जाता है।
१४.
जिनका कपाय मर्वथा उपशान्न व क्षीण हो जाना है. उन्हें क्रमशः उपशान्नमोह व क्षीणमोह कहा जाता है।
उपशमणि में आढ़ मुनि मोहकर्म की प्रकृनियों को उपशम करता हुआ ग्यारहवें जीवस्थान में सर्वथा उपशान्तमाह हो जाता है।
भपकश्रेणि में आठ मुनि मोहकर्म की प्रकृतियों को क्षीण