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पैन सिदान्त दीपिका
१४१ ७. जिसके संयम पोर असंयम दोनों होते हैं, उसे देशविरत कहा जाता है।
देशविरत का शाब्दिक अर्थ है-आंशिकरूप में व्रत की आराधना करनेवाला।
वह पूर्णवती नहीं होता, इसलिए उसे अविरत भी कहा जाता है।
८. प्रमाद से युक्त सर्वविरत को प्रमत्तसंयत कहा जाता है।
प्रमाद के दो रूप हैं-अव्यक्त और व्यक्त । अव्यक्त प्रमाद (प्रमाद-आश्रव) मंयम में अवरोध नहीं करता। व्यक्त प्रमाद (प्रवृत्तिरूप प्रमाद) मलोत्पादक होता है तब उससे संयम विनष्ट नहीं होता। यहां प्रमाद शन्द के द्वारा ये दोनों विवक्षित हैं, किंतु संयम-विनाशक व्यक्त प्रमाद विवक्षित नहीं है।
६. प्रमाद मे वियुक्त ध्यानलीन मुनि को अप्रमत्तसंयत कहा
जाता है।
१०. जो निवृत्ति और बादर कपाययुक्त होता है, वह निवृत्तिबादर कहलाता है।
निवृति का अर्थ है-विसदृशता। प्रस्तुत जीवस्थान में समसमयवर्ती जीवों को परिणाम-विणुद्धि विसदृश होती है। बादर का अर्थ स्थल है। वादर कषाय अर्थात् स्थूल कपाय वाला।
निवृत्तिबादर का दूसरा नाम अपूर्वकरण भी है।