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जन सिद्धान्त दीपिका
४. सम्यक्त्व से च्यवमान जीव (उपगम सम्यक्त्व से व्युत, मिथ्यात्व
को अप्राप्त) सास्वादनसम्यक्दष्टि कहलाता है।
५. जिसकी रुचि मम्यक् और मिथ्या दोनों से मिश्रित होती है, उसे मम्यगमिथ्यादष्टि कहा जाता है ।
जिसकी मचि न सर्वथा सम्यग् होती है और न सर्वथा मिथ्या, किन्तु मिश्रित होती है, उस मम्पग्मिध्यादष्टि कहा जाता है। शकंगमिश्रित दहि को रमानुभूति न केवल अम्ल होनी है और न केवल मधुर, किन्तु मिश्रित होती है, उसकी अम्नता और मधुरता को सर्वथा पृथक नहीं किया जा सकता वैसे ही प्रस्तुत जीवम्यान में सम्यक् और मिथ्या कचि को पृथक नहीं किया जा मकना।
६. तत्त्व-श्रद्धालु होने पर भी जो असंयत होता है, उसे अविरतसम्यग्दष्टि कहा जाता है।
जीव-अजीव आदि नन्वों के प्रति श्रद्धालु होने के कारण जीव सम्यग्दष्टि होता है किन्तु मंयम के अभाव में वह विरत नहीं होता। इस अवस्था में वह अविरतसम्यग्दृष्टि कहलाना
मिथ्याष्टि, सम्यगमिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि की तत्त्वरुचि भी मिथ्यादष्टि, सम्यमिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि कहलाती है।