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जैन सिद्धान्त दीपिका
१२१ कव मैं गृहवास को छोड़कर प्रवृजित होऊंगा?
कब मैं मारणान्तिक संलेखनापूर्वक भक्तपान का प्रत्याख्यान करूंगा?
इन तीन विषयों का पर्यालोनन (मनोग्थ) करने से श्रावक के महानिर्जरा होती है।
२८. इन्द्रिय और मन का निग्रह करनेवाला अनुष्ठान कर्म गरीर का नापक होने के कारण सम्यक्ता कहलाता है।
यह कर्म शरीर का तापक होने के कारण ही आत्मिक निर्मलता का संपादन करने वाला होता है ।
२६. वाह्य तप के छह भेद हैं : १. अनशन
४. रमपरित्याग २. ऊनोदरिका ५. कायक्लेश ३. वृत्तिमंक्षेप ६. प्रतिमलीनता
ये मोक्षसाधना के बहिरंग कारण हैं अत: इन्हें बाघ तप कहा जाता है।
३०. आहार का त्याग करने को अनशन कहते हैं।
आहार चार प्रकार का होना है-अन्न, पानी, ग्वाद्य (मेवा आदि) और स्वाद्य (लवंग आदि)। इनको न्यागने का नाम अनशन है।
वह दो प्रकार का होता है : इत्वरिक-उपवास से लेकर छह माम तक को नपम्या। यावत्कथिक-आमग्ण तपम्या ।