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जन सिदान्त दीपिका
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१६. जिसका ज्ञान-दर्शन अनावृत हो जाता है, मोह क्षीण हो जाता है
और देह छूट जाता है उम आत्मा को सिर कहा जाता है ।
२०. सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परमात्मा, परमेश्वर, ईश्वर -ये सब एकार्थ
वाची शब्द हैं।
२१. वे मंख्या की दृष्टि से अनन्त तथा पुनर्जन्म न होने के कारण अपुनरावृत्ति होते है।
मांमरिक जीव मिद्ध आत्माओं से अनन्तानन्त गुण अधिक हैं अतः यह उपस्थित ही नहीं होता कि यह मंमार कभी जीवों मे खाली हो जाएगा।
सिद्ध पन्द्रह प्रकार के होते है. . तीर्थमिद्ध, अतीर्थमिद्ध, नीदर सिद्ध, अनीमिद्ध, स्वनिङ्गमिद्ध, अन्यनिङ्गसिद्ध, गृहलिङ्गमिद्ध, स्त्रीलिङ्गमिद्ध, पुरुषलिङ्गमिद्ध, नपुंसकलिङ्गमिद्ध, (कृत्रिम नपुंसक), प्रत्येकबुद्धमिद्ध, स्वयंबुद्धमिद्ध, बुद्धबोधितसिद्ध, एकसिद्ध और अनेकसिद्ध'।
२३. आत्माएं कर्म मुक्त होते ही प्रथम एक समय में (अविग्रह गति
से) लोकान्त तक ऊंची चली जाती है। ____ मुक्त आत्मा जैसे ही कर्ममुक्त होती है वैसे ही पहले समय में ऊपर की ओर लोकान्न नक चली जाती है। उससे आग धर्मास्तिकाय नहीं है, अनः वे अलोक गं नहीं जाती।
१. देखें परिशिष्ट १७