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चैन सिद्धान्त दीपिका
५. बन्ध चार प्रकार का होता है - प्रकृति, स्थिति,
प्रदेश |
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अनुभाग और
६. सामान्य रूप से ग्रहण किये हुए कर्म पुद्गलों का जो स्वभाव होता है उसे प्रकृतिबन्ध कहते हैं ।
जैसे - ज्ञान को रोकना ज्ञानावरण कर्म का स्वभाव है और दर्शन को रोकना दर्शनावरण कर्म का स्वभाव है ।
मूल प्रकृतियां आठ हैं - ज्ञानावरण, दर्शनावरण आदि' । उनकी उत्तर प्रकृतियों के भेद निम्न प्रकार हैं-ज्ञानावरण के पांच, दर्शनावरण के नौ, वेदनीय के दो, मोहनीय में दर्शनमोहनीय के तीन और चारित्र मोहनीय के पचीस - इस प्रकार अट्ठाईस, आयुष्य के चार, नाम के बयालीस, गोत्र के दो और अन्तराय के पांच । इन सबको मिलाने से सत्तानवें प्रकृतियां होती हैं।
१. देखें ४।२
२. देखें परिशिष्ट ११६
७. कर्मों की आत्मा के साथ सम्बद्ध रहने की अवधि को स्थिति बन्ध कहते हैं ।
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय इन चारों की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ सागर, मोहनीय की सत्तर कोड़ाकोड़ सागर, नाम और गोत्र की बीस कोड़ाकोड़ सागर तथा आयुष्य की तेंतीस सागर की होती है ।
वेदनीय की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त ( सम्पराय सात