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________________ उदार बनिए 'विभिन्ना पन्थान' - अनेक मार्ग है । कौन किसे अपनाए, यह अपनी इच्छाके अधीन है। प्रत्येक व्यक्तिके लिए विचारस्वातंत्र्यका द्वारा खुला है । दार्शनिक क्षेत्रमे वलप्रयोगके लिए कोई स्थान नहीं । जिसे जो सिद्धान्त उपादेय लगे, उसे अपनाए, उसका प्रचार करे - यह अधिकारकी बात है । दूसरोंके सिद्धान्तोंको तोड़-मरोड़कर जनताके सम्मुख रखना धर्म - मर्यादा के प्रतिकूल है । धार्मिक व्यक्तिमे तितिक्षा होनी चाहिए, परधर्म - साहिष्णुताका भाव होना चाहिए। दूसरोंके धर्मों पर आक्षेप या उनकी कटु आलोचना करना आत्मदर्शी के लिए‍ नितान्त अनुचित है । कविने कहा है "योऽपि न सहते हितमुपदेश तदुपरि मा कुरु कोपम् ।” १ – गान्तसुधारस
SR No.010303
Book TitleJain Shastra sammat Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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