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________________ [ ३६ ] जो तेरा हित उपदेश न माने, उसपर भी क्रोध मत कर । दूसरोंकी बुराई करनेवाला अपनी धार्मिकताको भी खो बैठता है । तेरापन्थ एक प्रगतिशील और जीवित समाज है इसलिए उसका कई वर्गों द्वारा विरोध भी होता है । विरोधका उद्देश्य है, तेरापन्थकी मान्यताओंको विकृत बनाकर जनताको भ्रान्त करना । हमे इसका कोई खेद नहीं । विरोधका स्वागत करतेहुए हमे बड़ा हर्प होता है । जैसाकि आचार्यश्री तुलसीने लिखा है " जो हमारा हो विरोध, हम उसे समझे विनोद | सत्य सत्य- शोध मे तव ही सफलता पायेगे ॥ किन्तु धार्मिक एकताकी पुष्टिके लिए यह आवश्यक है कि एक दूसरेके सिद्धान्तोंके प्रति घृणा फैलानेकी चेष्टा न की जावे ।
SR No.010303
Book TitleJain Shastra sammat Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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