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[ ३४ ] ' अर्थात् कौन तेरी स्त्री है और कौन तेरा पुत्र ! यह संमार बडा विचित्र है।
समाजकी दृष्टि है इनका भरण-पोपण और संग्रह करो, ये सव सुखके साधन हैं। गृहस्थ जीवनमे मोक्षधर्म और समाज धर्म दोनोंका समन्वय होता है। जितना याग है, वह मोक्षका आचरण है और जितना वन्धन है, वह समाजकी स्थिति है। दोनोंको एक समझनेकी और एक दृष्टिसे समझनेकी भूल नहीं होनी चाहिए।