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________________ अहिंस और दया दान अन्य विचारकों की दृष्टिमें आचार्य भिक्षुने जो विचार स्थिरता पूर्वक रखे, वे ही विचार अध्यात्म - योगमे डुबकिया लगाते समय अन्य विचारकोंने भी रखे है । उदाहरणस्वरूप कुछ पढिए, पता चलेगा-तत्त्व क्या है • यजुर्वेद - “मै समूचे संसारको मित्रकी दृष्टिसे देख । " [ विश्वस्याsह मित्रस्य चक्षुषा पश्यामि । ] मुण्डकोपनिषद् ११२१७- “ये यज्ञरूपी नौकाएं जिनमे अठारह प्रकारके कर्म जुडे हुए है, संसार-सागर से पार करनेके लिए असमर्थ है । जो ना समझ लोग, इन याज्ञिक कर्मोंको कल्याणकारी समझकर इनकी प्रशंसा करते है उन्हें पुनः पुनः जरा और मृत्युके चक्कर मे पडना पड़ता है ।"
SR No.010303
Book TitleJain Shastra sammat Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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