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को प्राप्त कर लेता है, वह किसी एक इन्द्रिय से पांचों इन्द्रियों का काम ले सकता है। उदाहरण के रूप में वह स्पर्शन इन्द्रिय से सुन सकता है, देख सकता है, सूंघ सकता है और चख सकता है। आहार-शुद्धि के उपाय
१. हिताहार २. मिताहार ३. सात्त्विकाहार। हिताहार-जो आहार सम धातुओ को प्रकृति में स्थापित करता है और विपम धातुओ को सम करता है, उसका नाम हिताहार है। प्रकृति के अनुकूल भोजन करना, विरुद्ध वस्तुएं न खाना, विकृत वस्तुए न खाना आदि-आदि। हिताहार की कसौटिया निम्न है१. शरीर की शक्ति-क्षय का निवारण २. शरीर की वृद्धि ३. शरीर को उचित ताप-प्रदान ४. बलकारक ५. शीघ्र पाचन ६. अनुत्तेजक ७ स्मृति, आयु, वर्ण, ओज, सत्त्व एवं शोभा की वृद्धि। मिताहार-परिमित भोजन करना। भोजन की निश्चित मात्रा का निर्देश करना कठिन है। जितना खाने पर एक घटा बाद भी पेट पर भार न हो, पानी पीने से पेट फटता न हो, वह मितभोजन है।
सात्त्विकाहार-मादक व उत्तेजक वस्तुओ का वर्जन, शरीर-इन्द्रिय व मन की प्रसन्नता व लाघव मे वाधा न पड़े, वैसा भोजन।
इन्द्रिय-शुद्धि के उपाय
१ इन्द्रियो का सम्यग् योग २ प्रतिसलीनता। इन्द्रियो की प्रवृत्ति के तीन प्रकार है-अयोग, अतियोग और योग।
मनोनुशासनम् । १५