________________
वह देखता है और जिसे कान प्राप्त है, वह सुनता है। देखना और सुनना अपने-आप मे अच्छा भी नही है और बुरा भी नही है। उसमे अच्छाई और बुराई ध्येय के आधार पर फलित होती है। हम मुक्ति के लिए देखे, मुक्ति के लिए सुने, मुक्ति के लिए खाए और मुक्ति के लिए जिए तो हमारा जीना भी साधना है, खाना भी साधना है, देखना और सुनना भी साधना है। ___आचार्य हरिभद्र ने इसी तथ्य की अभिव्यक्ति इन शब्दो मे की है- 'मोक्खेण जोयणाओ जोगो सव्वो वि धम्मवावारो'-वह सारा धार्मिक व्यापार योग है जो व्यक्ति को मुक्ति से जोडता है। योग वही है जो मुक्ति के लिए है और मुक्ति से जुड़ा हुआ है। वन्धन के लिए या बन्धन से जोड़ने वाली कोई भी प्रवृत्ति न धार्मिक हो सकती है और न यौगिक। ___ भगवान् महावीर ने कहा है-सयम से चलो, सयम से खडे रहो, सयम से बैठो, सयम से सोओ, सयम से खाओ और सयम से बोलो, फिर पाप-कर्म का बन्धन नही होगा। बन्धन वही है जहा सयम नही है और मुक्ति का ध्येय निष्ठित हुए बिना जीवन मे सयम आता नहीं। मुक्ति हमारे जीवन का ध्येय है और सयम ध्येय-पूर्ति की साधना है। उन दोनो मे सामजस्य है। मुक्ति और असयम मे सामजस्य नही है। हमारा ध्येय मुक्ति हो और हमारी जीवनगत प्रवृत्तियो मे सयम न हो, वह ध्येय और ध्येय-पूर्ति की विसगति है। जीवन मे सयम लाने का प्रयत्न हो और मुक्ति का ध्येय निष्ठित न हो, वह भी विसगति है। विसगति की दशा मे जिसकी निष्पत्ति हम चाहते है, वह निष्पन्न नही होता। इसकी निष्पत्ति ध्येय और साधना के सामजस्य से ही हो सकती है। ___कोई व्यक्ति मुमुक्षु है तो उसमे सयम होना स्वाभाविक है। मुमुक्षा उसकी प्रवृत्तियो का सहज भाव से नियमन करती है। मुमुक्षु व्यक्ति खाएगा किन्तु खाने मे आसक्त नही होगा। वह देखेगा और सुनेगा किन्तु देखने और सुनने मे उसकी आसक्ति नही होगी। आसक्ति और अनासक्ति के बीच भेदरेखा ध्येय के द्वारा ही खीची जाती है। जिसमे मुमुक्षा है, उसकी प्रवृत्ति इन्द्रिय-तृप्ति के लिए नही हो सकती किन्तु प्राप्त आवश्यकता की पूर्ति के लिए होती है। जहा प्रवृत्ति ध्येय की पूर्ति के लिए की जाती है, २ / मनोनुशासनम्