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कपाय-प्रियता और अप्रियता की मनोवृत्ति । कायोत्सर्ग-शारीरिक प्रवृत्ति का विसर्जन। कारुण्य-दया। किट्ट-मलमूत्र। कुम्भक-श्वास का रेचन। क्षमा-क्रोध का निग्रह। क्षुत्-भूख। गण-सघ। गुप्ति-गोपन करना। घ्राण-गन्ध-ग्राहक इन्द्रिय। चक्षु-रूपग्राहक इन्द्रिय। चतुष्क-चौराहा। चन्द्रनाडी-बाया स्वर। चाप-दवाव। चेतनावान-चैतन्यधर्मा। जिनकल्प-साधना की एक विशेष पद्धति। जिह्वाग्र-जीभ का अग्रभाग। ज्ञान-विशेप या विश्लेषणात्मक बोध । तप-संचित कर्मो के शोधन का पराक्रम। तीर्थकर-साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका-इन चार तीर्थो के
स्थापक। त्याग-विसर्जन, सविभाग। त्रैकालिक-भूत, भविष्य और वर्तमान-तीनो मे होने वाला। त्वक्-त्वचा। दर्शन-सामान्य बोध। द्रव्य-पदार्थ। धर्म-आत्मशुद्धि का साधन। धारणा-ध्येय मे चित्त को सन्निविष्ट करना। ध्याता-ध्यान का अधिकारी। नाद-ध्वनि।
' २०२ / मनोनुशासनम्