________________
शुभ और अशुभ निमित्त कर्म के उदय में परिवर्तन ला देते हैं। किन्तु मन का सकल्प उन सबसे बडा निमिन है। इससे जितना परिवर्तन हो सकता है, उतना अन्य निमित्तो से नहीं हो सकता। जो अपने निश्चय में एकनिष्ठ होते है वे महान् कार्य को सिद्ध कर लेते है । गौतम ने पूछा-'भन्ते । सयम से जीव क्या प्राप्त करता है ? भगवान न कहा-'सयम से जीव आस्रव का निरोध करता है। सयम का फल अनाव है। जिसमें सयम की शक्ति विकसित हो जाती है, उसमे विजातीय द्रव्य का प्रवेश नहीं हो सकता। सयमी मनुष्य वाहरी प्रभावो स प्रभावित नहीं होता। टशवकालिक मे कहा है-'काले काल समायरे'-सव काम ठीक समय पर करो। सूत्रकृतांग मे कहा है-'खाने के समय खाओ, सोने के समय सोयो। सद काम निश्चित समय पर करो। यदि आप नौ वजे ध्यान करते है और प्रतिदिन उस समय ध्यान ही करते है, मन की किसी अन्य माग को स्वीकार नहीं करते तो आपकी सयमशक्ति प्रवल हो जाएगी।
सयम एक प्रकार का कुभक है। कुभक मे जैसे श्वास का निरोध होता है, वैसे ही सयम मे इच्छा का निरोध होता है। भगवान महावीर ने कहा-सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास, वीमारी, गाली, मारपीट-इन सब घटनाओ को सहन करो। यह उपदेश नहीं है। यह सयम का प्रयोग है। सर्दी लगती है, तव मन की माग होती है कि गर्म कपडो का उपयोग किया जाए या सिगडी आदि की शरण ली जाए। गर्मी लगती है, तव मन ठडे द्रव्यो की माग करता है। सयम का प्रयोग करने वाला उस माग की उपेक्षा करता है। मन की माग को जान लेता है, देख लेता है, पर उसे पूरा नहीं करता। ऐसा करते-करते मन माग करना छोड़ देता है, फिर जो घटना घटती है, वह सहजभाव से सह ली जाती है।
प्रेक्षा सयम है, उपेक्षा सयम है। आप पूरी एकाग्रता के साथ अपने लक्ष्य को देखे, अपने आप सयम हो जाएगा। फिर मन, वचन और शरीर की माग आपको विचलित नही करेगी। उसके साथ उपेक्षा, मन वचन और शरीर का सयम अपने आप सध जाता है।
सयम-शक्ति का विकास इस प्रक्रिया से किया जा सकता है-जो करना है या जो छोडना है, उसकी धारणा करो-उस पर मन को पूरी १ उत्तरज्झयणाणि, २६ सूत्र २६ । १८६ / मनोनुशासनम्