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उसका उपयोग किया जाता है। यात्रा के समय या अन्य किसी कार्यारम्भ के समय कोई अपशकुन या वाधा उपस्थित हो जाए तो आठ श्वास-प्रश्वास का कायोत्सर्ग कर, नमस्कार महामत्र का चिन्तन करना चाहिए। दूसरी वार भी वाधा उपस्थित हो तो सोलह श्वास-प्रश्वास कायोत्सर्ग कर, दो वार नमस्कार महामन्त्र का चिन्तन करना चाहिए। यदि तीसरी वार भी वाधा उपस्थित हो तो बत्तीस श्वास-प्रश्वास का कायोत्सर्ग कर चार वार नमस्कार महामन्त्र का चिन्तन करना चाहिए। चौथी वार भी वाधा उपस्थित हो तो विघ्न को अवश्यभावी मानकर यात्रा का कार्यारम्भ नहीं करना चाहिए।'
कायोत्सर्ग की अनेक उपलब्धिया है । १. देहजाड्यशुद्धि-लेम आदि टोपो के क्षीण होने से देह की
जड़ता नष्ट हो जाती है। २ परमलावव-शरीर वहुत हल्का हो जाता है। ३ मतिजाड्यशुद्धि-जागरूकता के कारण बुद्धि की जडता नष्ट
हो जाती है। ४. सुख-दुख तितिक्षा-सुख-दुख को सहने की क्षमता वढती है। ५. सुख-दुख मध्यस्थता-सुख-दुख के प्रति तटस्थ रहने का
मनोभाव वढता है। ६. अनुप्रेक्षा -अनुचिन्तन के लिए स्थिरता प्राप्त होती है। ७. मन की एकाग्रता सधती है।
१ व्यवहार भाप्य पीठिका, गाथा, ११८, ११६
सव्वेसु खलियादिसु, एज्जा पच मगल। दो सिलोगे व चितेज्जा एगग्गो वावि तक्खण।। विडय पुण खलियादिसु, उस्सासा होति तह य सोलस व ।
तडयम्मि उ वत्तीसा, चउत्थम्मि न गच्छए अण्ण।। २ (क) कायोत्सर्ग शतक, गाथा १३ ।।
देहमडजड्डसुद्धी, सुहदुक्खतितिक्खया अणुप्पेहा।
झाइय य सुह झाण, एगग्गो काउसग्गम्मि|| (ख) व्यवहार भाष्य पीठिका, गाथा १२५
मणसी एगग्गत्त जणयई, देहस्स हणई जड्डत्त।
काउस्सग्गगुणा खलु, सुहदुहमज्झत्थया चंव। (ग) वही, वृत्ति प्रयत्नविशेपत परमलाघवसभवात्।।
मनोनुशासनम् । १७६