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जहा कही हो उसे रोककर कुम्भक किया जाए। दस या पन्द्रह आवृत्तिया की जाए। ५. संकल्प-योग
प्रात कालीन जागरण के साथ पाच मिनट तक भावना का अभ्यास करे। जिन गुणो का विकास चाहे, उन गुणो की तन्मयता का अनुभव करे-उन गुणो से चित्त को भावित करे। ६. प्रतिक्रमण-योग __रात्रि-शयन से पूर्व पाच मिनट तक अपनी अतीत की प्रवृत्तियो का सजगतापूर्वक निरीक्षण करे-समय की अपेक्षा से प्रतिलोम निरीक्षण करे। ७. भाव-क्रिया
अपनी दैनिक प्रवृत्तियो मे भाव-क्रिया का अभ्यास करे-वर्तमान क्रिया मे तन्मय रहने का अभ्यास करे। जैसे-चलते समय केवल चलने का ही अनुभव हो, खाते समय केवल खाने का ही, इत्यादि। जो क्रिया करे, उसकी स्मृति बनी रहे।
पांचवीं भूमिका १. प्रेक्षा-ध्यान
(क) श्वास-प्रेक्षा-पूर्ववत्। (ख) धर्म-प्रेक्षा-(धर्म ध्यान)
भूत, वर्तमान और भविष्य के धर्मो अथवा पर्यायो को देखनाविपाक-प्रेक्षा, अपायप्रेक्षा, सस्थान-प्रेक्षा।
(ग) सामायिक-ज्ञाता और द्रष्टा के रूप मे वेदना-सप्रेक्षा। २. प्रेक्षा-ध्यान : अनिमेष प्रेक्षा
पूर्ववत्। १ चतुर्थ भूमिका के साधक की चर्या आदि पूर्ववत् रहेगी। केवल आसनो के समय
मे इस प्रकार परिवर्तन होगावद्धपद्मासन-पन्द्रह मिनट ।
कायोत्सर्गासन-पचीस मिनट। १६६ / मनोनुशासनम्