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अनुभव हो, खाते समय केवल खाने का ही, इत्यादि। जो क्रिया करे, उसकी स्मृति बनी रहे।
चतुर्थ भूमिका १. प्रेक्षा-ध्यान (क) श्वास-प्रेक्षा · प्रेक्षा-ध्यान सूक्ष्म श्वास के साथ
समय-दस मिनट से एक घटा तक। (ख) संयम-मन, वचन,काया की जो मांग सामने आए, उसे अस्वीकार
करना, विकल्प का उत्तर न देना–प्रतिक्रिया न होने देना। केवल इन्द्रियो से काम लेना, उनके साथ मन को न जोडना। ईहा न' करना। प्रियता और अप्रियता के मध्यविन्दु की खोज करना,
मध्य मे रहना-मध्यस्थ भाव का विकास करना। (ग) सामायिक-ज्ञाता और द्रष्टा के रूप मे विचार-सप्रेक्षा। २. प्रेक्षा-ध्यान : अनिमेष-प्रेक्षा
समय-पांच मिनट से नौ मिनट तक। ३. भावना-योग (क) मैत्री-अनुप्रेक्षा
समय-पाच मिनट से एक घंटा तक। (ख) अर्हम् भावना
समय-पाच मिनट से आधा घटा तक। (ग) 'ऐं' भावना
समय-पांच मिनट से आधा घंटा तक। ४. श्वास-संयम : केवल कुम्भक
परक-रेचक किए बिना श्वास भीतर हो तो भीतर, बाहर हो तो बाहर,
१ तृतीय भूमिका के साधक की चर्या आदि पूर्ववत् रहेगी। केवल आसनो के समय
मे इस प्रकार परिवर्तन होगाबद्धपद्मासन-दस मिनट कायोत्सर्गासन-पन्द्रह मिनट।
मनोनुशासनम् / १६५