________________
आदि साधन भी मन को एकाग्र करने में सहायक होते है। ब्रह्मचर्य के लिए केवल मानसिक चितन ही प्राप्त नहीं है, दैहिक प्रश्नों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। भोजन-सम्बन्धी विवेक और मल-शुद्धि का ज्ञान भी कम महत्त्व का नहीं है। यदि उसकी उपेक्षा की गई तो मानसिक चितन अकेला पड़ जाएगा। __ मानसिक पवित्रता, प्रतिभा की सूक्ष्मता, धैर्य और मानसिक विकास की सिद्धि के लिए उक्त साधनो का अभ्यास आवश्यक है। ब्रह्मचर्य का शरीरशास्त्रीय अध्ययन
शरीर-शास्त्र के अनुसार शरीर में आठ ग्रन्थियां होती है । १. श्लैष्मिक या पीयूप (पिच्यूटरी) २. कण्ठमणि (थाइरायड) ३. वृपण ४ सर्वकिण्वी (पेनक्रिया) ५. एड्रीनल या सुप्रारीनल ६. पैराथाइरायड ७. तृतीय नेत्र (पीनियलवॉडी) ८. यौवनलुप्त (थाइमस)
पीयूष ग्रन्थि
यह ग्रन्थि दिमाग के नीचे होती है। यह थाइरायड, पैराथाइरायड, एड्रीनल, पैनक्रिया व वृषण कोशो के स्रावो को नियत्रित करती है। इस ग्रन्थि के रसो का कार्य इस प्रकार है :
प्रथम रस का कार्य-शरीर-विकास । द्वितीय रस का कार्य-शरीर के जल या नमक का सन्तुलन। तृतीय रस का कार्य-गुर्दे के कार्य का नियंत्रण।
पीयूष ग्रन्थि काम कम करे तो काम-शक्ति नष्ट हो जाती है। कण्ठमणि ग्रन्थि
यह गर्दन मे श्वास नली से जुडी हुई होती है। इसका आकार
मनोनुशासनम् । १४१