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तितली के समान होता है। इसका रसस्राव अधिक होने पर शरीर को अधिक पोषण की जरूरत होती है। क्षुधा बढ़ जाती है किन्तु अन्य अंग साथ नही देते, इसलिए वह कमी पूरी नही होती। ऐसी स्थिति मे दुर्वलता आ जाती है। इस ग्रन्थि से रस कम निकले तो वुढापा आ जाता है, सर्दी अधिक लगती है, भूख कम हो जाती है, शिथिलता और उदासी रहती है।
वृषण ग्रन्थि
यह पुरुष के ही होती है। यह अण्डकोशो मे होती है। इसके रसस्राव से पौरुष जागता है और दाढी-मूछे आती है। पैनक्रिया ग्रन्थि
यह दो आतो के बीच मे होती है। एड्रीनल या सुप्रारीनल ग्रन्थि
ये दोनो ग्रन्थिया गुर्दे के ऊपरी हिस्से मे होती है। इनके स्राव शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते है। इनसे साहस मिलता है। ये स्राव यकृत की चीनी को रक्त के द्वारा मासपेशियो मे ले जाते है। वह मासपेशियो को जूझने की शक्ति देती है।
पैराथाइरायड ग्रन्थि
कण्ठमणि के पास गेहू के दाने के बराबर चार ग्रन्थिया होती है। इन्हे पैराथाइरायड कहा जाता है। ये रक्त मे कैल्शियम, फासफोरस आदि का उचित सतुलन बनाए रखती है। तृतीय नेत्र ग्रन्थि
यह मस्तिष्क मे होती है। यौवनलुप्त ग्रन्थि
यह सीने मे होती है।
१४२ / मनोनुशासनम्