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क्षीण हो जाते है। १७ हृदय मे वायु को धारण करने से ज्ञान की उपलब्धि होती है। १८ कूर्मनाडी मे वायु को धारण करने से रोग और वुढापा नष्ट
होता है। १६. कण्ठकूप के निचले भाग मे कुण्डली-मुद्रा मे बैठे हुए सर्प के
आकार की जो नाडी है, उसे कूर्मनाडी कहा जाता है। २० कण्ठकूप मे वायु को धारण करने से भूख और प्यास पर विजय
प्राप्त होती है। २१. जिह्वाग्र मे वायु को धारण करने से रस का ज्ञान प्राप्त होता है। २२. नासाग्र मे वायु को धारण करने से गध का ज्ञान प्राप्त होता
है।
२३. चक्षुओ में वायु को धारण करने से रूप का ज्ञान प्राप्त होता
है।
२४. कपाल मे वायु को धारण करने से क्रोध उपशान्त होता है। २५. ब्रह्मरन्ध्र मे वायु को धारण करने से चर्म चक्षुओ द्वारा अदृश्य वस्तुए दीखने लग जाती है।
वायु-विजय के लाभ महर्षि पतजलि ने उदान और समान दोनो के विजय के लाभ बतलाए है। उनके योगदर्शन मे शेष वायुओ के विजय के लाभ की कोई चर्चा नही है। उनके अनुसार संयम के द्वारा उदान वायु के जय से शरीर हल्का हो जाता है। फिर वह पानी में नही डूबता। उसके पैर कीचड मे नही फसते। कांटो मे भी नही उलझते। मरण के समय उसकी ब्रह्मरन्ध्र के द्वारा प्राणो के निकलने से ऊर्ध्वगति होती हैउदानजयाज्जलपककण्टकादिष्वसंग उत्क्रान्तिश्च॥
(पातजल योगदर्शन-विभूतिपाद, ३६) सयम के द्वारा समान वायु का विजय कर लेने पर साधक का शरीर दीप्तिमान हो जाता हैसमानजयाज्ज्वलनम्॥
(पातंजल योगदर्शन-विभूतिपाद, ४०)
मनोनुशासनम् । १२६