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ओर मुह कर ध्यान करने का निर्देश दिया गया है।
खड़े होकर ध्यान करना कठिन कार्य है। बैठकर ध्यान करना उससे सरल है। इसमे शारीरिक तनाव का विसर्जन अधिक सरलता से किया जा सकता है। बैठकर किए जाने वाले पद्मासन आदि अनेक आसन हे। वे सभी आसन ध्यान के लिए विहित है। किन्तु वैसे आसनों मे ध्यान करना विहित नही है जो शरीर के लिए कप्टकर हो। इस विषय मे कुछ आचार्यो का चिन्तन बहुत महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने लिखा है कि वर्तमान मे शरीर का सहनन बहुत दृढ नही है। इसलिए ध्यान के लिए पद्मासन और कायोत्सर्गासन-इन दो ही आसनो का प्रयोग करना चाहिए। यह कोई नियम नही है किन्तु वर्तमान की स्थिति का विवेक है।
ध्यान सोकर भी किया जा सकता है। उसका व्यवहार सामान्यत प्रचलित नहीं है किन्तु सोकर ध्यान न करना, ऐसा नियम भी नही है। अभ्यासकाल मे आसन आदि पर अधिक ध्यान देना आवश्यक होता है। अभ्यास के परिपक्व होने पर चाहे जिस मुद्रा या आसन मे ध्यान किया जा सकता है। ७. ग्रामागार-शून्यगृह-श्मशान-गुहोएवन-पर्वत-तरुमूल-पुलिनानि
ध्यानस्थलानि॥ ८ भूपीट-शिलाकाष्ठपट्टान्युपवेशनस्थानानि।। ७. गाव, घर, शून्यगृह, श्मशान, गुफा, उपवन, पर्वत, वृक्षमूल, नदी
का पार्श्व भाग आदि ध्यान करने के लिए उपयुक्त स्थल है। ८. भूपीठ, शिलापट्ट-ये बैठने के लिए उपयुक्त आसन है। ध्यान
के आसन पहले बताए जा चुके है।
ध्यान-स्थल ध्यान कहा किया जाए ? इस प्रश्न का भी अपने आप मे महत्त्व है। वस्तु का जैसे महत्त्व होता है, वैसे ही उसके क्षेत्र (आधारस्थल) का भी महत्त्व होता है। ध्यान के लिए सर्वाधिक समुचित क्षेत्र वही है, जहा कोलाहल न हो। एकाग्र होने मे बाधा डालने वाली कोई भी वस्तु न हो। शून्यगृह, श्मशान आदि स्थलो का चुनाव इसी दृष्टि से किया गया है। किन्तु ध्यान एकान्त स्थलो मे ही किया जाए, यह अनिवार्य नहीं है। वह
मनोनुशासनम् / ६७