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भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : ८५ अपने संघ, गण अन्वय आदिका ही कोई उल्लेख किया। उनकी गुरु परम्परा भी समयके विषयमें कोई सहायता नहीं करती।
हेमचन्द्रने अपने कोशमें लिखा है-'उत्तरो विध्यात्पारियात्रः ।' अर्थात् विंध्य पर्वतसे उत्तरमें पारियात्र है । श्रीयुत नाथूरामजीने लिखा है कि यह पारियात्र शब्द पर्वतवाची और प्रदेशवाची भी है। विन्ध्याचलकी पर्वतमालाका पश्चिम भाग जो नर्मदा तटसे शुरु होकर खंभात तक जाता है और उत्तर भाग जो अलीकी पर्वत श्रेणी तक गया है, पारियात्र कहलाता है। अतः पूर्वोक्त बारा नगर इसी भूभागके अन्तर्गत होना चाहिये। राजपूतानेके कोटा नगरमें जो बारा नामका कस्वा है वही बारा नगर है क्योंकि वह पारियात्र देशको सीमाके भीतर ही आता है। नन्दि संघकी पट्टावलीके अनुसार बारामें भट्टारकोंकी एक गद्दी भी रही है और उसमें वि० सं० ११४४ से १२०६ तकके १२ भट्टारकोंके नाम भी दिये हैं। इससे भी जान पड़ता है कि सम्भवतः ये सब पद्मनन्दि या माघनन्दिकी शिष्य परम्परामें हुए होंगे। और यही बारा (कोटा) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिके निर्मित होनेका स्थान होगा।
ओझाजी लिखित राजपूतानेका इतिहासके अनुसार गुहिलोत वंशके राजा नरवाहनका पुत्र शालिवाहन वि० सं० १०३०-३५ के लगभग मेवाड़का शासक था जिसका उत्तराधिकारी और पुत्र शक्ति कुमार था। प्रेमीजीका अनुमान है कि इसीके समयमै जम्बद्वीप पण्णत्तिकी रचना हुई है। इसके राजत्व कालके तीन शिलालेख अब तक मिले हैं
१. वि० सं० १०३४ वैशाख शुक्ला १ का आट पुर ( आहाड़ ) में कर्नल टाडको मिला।
२, आहाड़के जैन मन्दिरकी देव कुलिका वाला लेख ।
३. आहाड़के जैन मन्दिरकी सीढ़ीमें मामूली पत्थरके स्थान पर लगा हुआ लेख।
प्रेमीजीका कहना है कि जैन मन्दिरोंके लेखोंसे वह जिन शासन वत्सल भी मालूम होता है । यद्यपि वह पाशुपत मतका अनुयायी था। किन्तु जम्बूद्वीप पण्णत्तिकी रचनाके समय वह आहाड़ ( मेवाड़ ) का नहीं, बारा नगरका प्रभु था । मुंजने वि० सं० १०५३ के लगभग मेवाड़की राजधानी आहाड़को तोड़ा था अतएव उसके बाद ही किसी समय शक्तिकुमारका निवास स्थान वारा हुआ होगा और वही जम्बूद्वीप पण्णत्तिका रचना काल है ।
१. 'जै० सा० इ०' पृ० २५६-२६१ पर 'पद्मनन्दिकी जम्बू द्वीपपण्णत्ति'
शीर्षक लेख।