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भूगोल- खगोल विषयक साहित्य : ८१
पंच इमे पुरिसवरा चउदसपुब्वी जगम्मि विक्खादा |
ते वारस अंगधरा तित्थे सिरिवड्ढमाणस्स || १४८३ ।। - ति०५० ४ ।
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गंदी य दिमित्तो अवराजिद मुणिवरो महातेओ । गोवद्वणो महप्पा महागुणो भद्दबाहू य ॥ १२ ॥
पंचेदे पुरिसवरा चउदसपुव्वी हवंति णायव्वा ।
बारस अंगधरा खलु वीरजिणिदस्स णायव्वा ॥ १३॥ - ज०द्वी०५० १ ।
इस तरहकी समान गाथाएँ बहुत सी हैं ।
किन्तु जं० द्वी० प० का पूरा विषय वर्णन ति० प० के सर्वथा अनुकूल नहीं है । उसमें अनेक स्थलों पर अन्तर भी है । ति० प० ( १ - १०४ ) में आठ सन्नासन्नोंका एक त्रुटिरेणु और आठ त्रुटिरेणुओंका एक त्रसरेणु बतलाया है । किन्तु जं० द्वी० प० १३।२१ में आठ सन्नासन्नोंका एक व्यवहार परमाणु और आठ व्यवहार परमाणुओंका एक त्रसरेणु कहा है । व्यवहार परमाणु संज्ञा किसी दिगम्बर परम्पराके ग्रन्थमें हमने नहीं देखी । हाँ श्वेताम्बरीय परम्पराके ग्रन्थोंमें मिलती है ।
अनुयोगद्वार सूत्रमें दो गाथाएँ इस प्रकार हैं
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परमाणु तसरेणु रहरेणु अग्गयं च बालस्स । लिक्खा जूआ य जवो अट्ठगुणविवड्ढिया कमसो ॥ ९९ ॥ सत्थेण सुतिक्खेणवि छित्तु ं भेत्तु च जं किर न सक्का । तं परमाणु सिद्धा वयंति आई पमाणाणं ॥ १००॥ ये दोनों गाथाएँ जं० द्वी० प० में इस प्रकार हैं
सत्थेण सुतिक्खेण यछेत्तु ं भेत्तु ं च जं किर ण सक्कं । तं परमाणु सिद्धा भगति आदि पमाणेण ॥ १८॥ परमाणु तसरेणु रहरेणु अग्गयं च बालस्स । लिक्खा जूवा य जओ अट्ठगुणविवड्ढिदा कमसो ||२२||
ये दोनों गाथाएँ ज्योतिष्करण्डमें इसी क्रमसे हैं । अतः वहींसे ली गई जान पड़ती हैं । ऐसी अनेक गाथाएं है जो दोनों ग्रन्थोंमें समान हैं । अनुयोगद्वारसूत्रमें अनन्तानन्त व्यवहार परमाणु पुद्गलोंकी एक उत्सन्नासन्ना, आठ उत्सन्नासन्नाओं की एक सन्नासन्ना और आठ सण्णासण्णाओंका एक उर्ध्वरेणु और आठ उर्ध्वरेणुओंका एक त्रसरेणु बतलाया है । तिलोयपण्णत्ति तथा तत्त्वार्थ वार्तिकमें अनन्तानन्त परमाणुओंकी एक उत्सन्नासन्ना आदि बतलाये हैं । वहां व्यवहार परमाणु
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