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८० : जेनसाहित्यका इतिहास परमाणुसे प्रारम्भ किया गया है। जं. द्वी० ५० में यही कथन उसके तेरहवें अधिकारमें किया गया है। ति० प० में सात गाथाओंके द्वारा •( गा० ९५१०१ ) परमाणुका स्वरूप बतलाया है। जं. द्वी०प० में उनमेंसे दो गाथाएं ही ली गई है
'सत्येण सुतिक्खेणं छत्तु भेत्तुं च जं किरस्सक्कं । जलयलणादिहिं णासं ण एदि सो होदि परमाणु ॥९६॥ अंतादिमज्झहीणं अपदेसं इंदिएहि ण हु गेज्झं । जं दवं अविभत्तं तं परमाणु कहति जिणा ॥९८॥-ति० ५०
अंतादिमज्झहीणं अपदेसं णेव इंदिए णेझं । जं दव्वं अविभागी तं परमाणु मुणेयव्बा ॥१६॥ सत्येण सुतिक्खेण ण छेतुं भेत्तच जं किर ण सक्कं ।
तं परमाणु सिद्धा भणंति आदि पमाणेण ॥१८॥-जं० द्वी०प० ये दोनों गाथाएं ति० प० में भी ग्रन्थान्तरोंसे ली गई है । जं० वी०प० में भी ये ग्रन्थान्तरोंसे ही ली गई जान पड़ती है । इनमेंसे 'सत्येण सुतिक्खेण' गाथा श्वेताम्बर साहित्यमें बहुतायतसे मिलती है। ज्योतिष्करण्ड (गा० ७३) में भी यह गाथा ज० द्वी० प० के अनुरूप ज्योंकी त्यों है। अतः नीचे आगेकी अन्य गाथाएं दी जाती है
परमाणूहिं अणंताणंतेहि बहुविहेहि दव्वेहि। उवसण्णासण्णो त्तिय सो खंदो होदि णामेण ॥१०२॥ उवसण्णासण्णो त्तिय गुणिदो अट्टेहि होदि णामेण । सण्णासण्णो त्ति तदो दु इदि खंधो पमाणटुं॥१०३॥-ति० ५० १।
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परमाणुहिं य णेया णंताणंतेहि मेलिदेहि तहा । ओसण्णासण्णे ति य खंधो सो होदि णादव्वो ॥१९॥ अटेहि तेहिं दिट्ठा ओसण्णासण्णएहिं दव्वेहिं ।
सण्णासण्णो ति तदो खंघो णामेण सो होइ ॥२०॥-जं०वी०प०१३ । ति० प० में भगवान महावीरके पश्चात् हुए अंग ज्ञानियोंकी परम्परा दी गई हैं उसमें उनका कालमान भी है । जं० द्वी० ५० के आरम्भमें कालमानको छोड़ कर उसी रूपमें परम्परा दी गई है उसकी कुछ गाथाएं यहां उद्धृत की जाती है
गंदी य णंदिमित्तो विदियो अवराजिदो तइज्जो य । गोवद्धणो चउत्यो पंचमओ भद्दबाहुत्ति ॥५४८२॥