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भूगोल -खगोल विषयक साहित्य : ६१ सात प्राणोंका एक स्तोक, सात स्तोकोंका एक लव, साढ़े अड़तीस लवकी एक नाली होती है । इस नालीका आकार आदि कालमान नामक दूसरे अधिकारमें बतलाये हैं । लिखा है - अनारके फूलके आकारकी लोहेकी नाली बनवानी चाहिये । उसके तलमें छिद्र करना चाहिये । छिद्र बनानेका भी विधान किया है । फिर उसमें पानी डालनेका भी प्रमाण बतलाया है । इस नालिकाके द्वारा उस समय कालको जाना जाता था । दो नालीका एक मुहूर्त होता था । यह कथन तो अन्य भी ग्रन्थोंमें मिलता है किन्तु नालीकी उपपत्ति अन्यत्र नहीं मिलती । तत्त्वार्थ वार्तिक ( ४ २०५ - २०६ ) में जो प्रतिमानका कथन है वह बिलकुल ज्योतिष्करण्डके कालमान सम्बन्धी कथनसे मिलता है किन्तु उसमें भी नालीकी उपपत्ति नहीं दी है । इस काल मान नामक दूसरे अधिकारमें ८० गाथाएं हैं । कालका मान जानने के लिये यह अधिकार बहुत उपयोगी है । इसकी अनेक गाथाएँ अन्य ग्रन्थोंमें भी मिलती हैं ।
तीसरे अधिकमास नामक अधिकारमें केवल तीन गाथाएं है । उसमें बतलाया है कि चन्द्रमा और सूर्यमासमें जितना अन्तर है उसको तीससे गुणा करने पर अधिकमासकी निष्पत्ति होती है । चौथे तिथि निष्पत्ति नामक अधिकारमें १३ गाथाएँ हैं । इसमें तिथिकी निष्पत्तिकी प्रक्रिया बतलाई है । छठे नक्षत्र परिमाणमें नक्षत्रोंके नाम, आकार वगैरह बतलाये है । इसी तरह प्रत्येक अधिकारमें अपने नामके अनुरूप ज्योतिष मण्डलका कथन किया है ।
ज्यो० क० के दूसरे अधिकार में कालका मान बतलाते हुए लिखा है कि चौरासी लाख पूर्वोका एक लतांग, चौरासी लाख लतांग की एक लता और चौरासी लाख महालताङ्गोंका एक नलिन होता है । इसी तरह नलिन, महा नलिनांग, महानलिन, पद्मांग, पद्म, महापद्मांग, महापद्म, कमलांग, कमल, महाकमलांग, महाकमल, कुमुदांग, कुमुद, महाकुमुदांग, महाकुमुद, त्रुटितांग, त्रुटित, महात्रुटितांग, महात्रुटित, अष्टांग, अष्ट, महाअष्टांग, महाअष्ट, ऊट्टांग, ऊट्ट, महोट्टांग, महोट्ट, शीर्ष प्रहेलिकांग, शीर्ष प्रहेलिका इस तरह क्रम दिया है । किन्तु ये जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति (सू० १८) में त्रुटितांग, त्रुटित, अट्टांग, अट्ट, अववांग, अवव, हुहुकांग, हुहुक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनिपूरांग, अर्थनिपूर, अयुतांग अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिक, शीर्ष प्रहेलिकांग और शीर्ष प्रहेलिका, यह क्रम दिया है । दोनोंमें बहुत अन्तर है ।
अनुयोगद्वार सूत्र (११४, १३७ ) का क्रम जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिसे मेल खाता है । इसी तरह तत्त्वार्थ वार्तिक ( पृ० २०९ ) में तथा तिलोयपण्णत्तमें (४-२८५