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६० : जैनसाहित्यका इतिहास
एक-एक प्राभृतके अन्तर्गत अनेक प्राभूत प्राभृत नामक अवान्तर अधिकार हैं। उनकी संख्या बीस तक हैं। अतः कोई प्राभृत छोटे हैं तो कोई बड़े भी है। जैसे पहला, दसवां और बारहवां प्राभूत बड़े हैं। तीसरा चौथा, पाचवां वगैरह छोटे हैं । इन प्राभूतोंमें जो प्रकृत विषयमें प्रचलित मतान्तर दिये गये है वे महत्वपूर्ण हैं। चन्द्र प्रज्ञप्ति ___यह तो सूर्य प्रज्ञप्तिकी नकल है। यतः उसमें चन्द्र और सूर्य दोनोंका कथन है इसलिये उसी ग्रन्थको दो नामोंसे प्रसिद्ध कर दिया जान पड़ता है। दोनोंके आरम्भ में थोड़ा अन्तर है। चन्द्र प्रज्ञप्तिके प्रारम्भमें कुछ गाथाएं हैं जिनमें अधिकार परक गाथाएँ भी हैं जो सूर्य प्रज्ञप्तिमें भी है। उसके बाद जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वाली उत्थानिका है । सूर्यप्रज्ञप्तिमें पहले उत्थानिका पीछे अधिकार सूचक गाथाएं हैं । केवल इतना ही अन्तर है । शेष अन्त पर्यन्त ज्योंकी त्यों है। ज्योतिष्करण्ड
श्री ऋषभ देवजी केशरी मल्लजी श्वेताम्बर संस्था रतलामसे प्रकाशित पंचाशक आदि मूल ग्रन्थों के संग्रह में प्रकाशित ज्योतिष्करण्डके ऊपर 'पूर्वभृद्वालम्य-प्राचीन-तदाचार्य-रचितं ज्योतिष्करण्डम् छपा हुआ है। जो बतलाता है कि वालम्य वाचनाके अनुयायी किसी प्राचीन आचार्यने इसकी रचना की थी। ___ इसमें २१ अधिकार हैं-१. काल प्रमाण, २. संवत्सर प्रमाण, ३ अधिकमास निष्पत्ति, ४. पर्वतिथि समाप्ति, ५. अवमरात्र, ६. नक्षत्र परिमाण, ७. चन्द्र सूर्य परिमाण, ८. चन्द्र सूर्य नक्षत्रगति, ९. नक्षत्रयोग, १०. चन्द्र सूर्य मण्डलविभाग, ११. अयन, १२. आवृत्ति, १३. मण्डलमें मुहूर्तगति परिमाण, १४. ऋतु परिमाण, १५. विषुव, १६. व्यतिपात १६. तापक्षेत्र, १८ दिवस वृद्धि, १९. अमावस्या पौर्णमासी, २०. प्रणष्ट पर्व और २१. पौरुषी । ग्रन्थके प्रारम्भमें ही गाथा २-५ के द्वारा ग्रन्थकारने उक्त अधिकार गिना दिये हैं। प्रथम गाथामें कहा है कि सूरपन्नत्ती (सूर्य प्रज्ञप्तिमें) जो कथन विस्तारसे किया है उसे यहाँ संक्षेपमें कहूँगा। अन्तिम गाथामें कहा है कि पूर्वाचार्योने शिष्यजनोंके बोधके लिये दिनकर पण्णत्ती (सूर्य प्रज्ञप्ति) से यह कालज्ञान संक्षेपमें लाया गया है । अतः यह स्पष्ट है कि इस ग्रन्थकी रचना सूर्य प्रज्ञप्तिके आधारसे की गई हैं । इसमें कुल ३७६ गाथाएं हैं।
प्रथम काल प्रमाणमें केवल पांच गाथाएँ हैं। जिनके द्वारा बतलाया है कि सबसे सूक्ष्म काल समय है। असंख्यात समयोंका एक उछ्वास और उतने ही का एक निश्वास होता है। एक उछ्वास और एक निश्वासोंका एक प्राण होता है ।