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भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : ५९ उनकी तिथियोंके तथा १५ रात्रि और उनकी भी तिथियोंके नामोंका उल्लेख किया है।
नौवे अधिकारमें २८ नक्षत्रोंके नामोंका निर्देश करके योग, देवता, गोत्र, संस्थान, चन्द्रसूर्ययोग, कुल, पूर्णिमा, अमावस्या, और सन्निपात, इनके आश्रयसे उनका विशेष कथन किया है।
दसवें अधिकारमें चन्द्रसूर्य विमानोंके नीचे-ऊपर ताराओंके विविध रूप उनका परिवार, मेरुसे अन्तर, लोकान्तसे अन्तर, पृथिवीतलसे अन्तर, अन्य नक्षत्रोंका पारस्परिक अन्तर, बाह्य एवं नीचे ऊपर नक्षत्रोंका संचार, विमानोंकी आकृति तथा प्रमाण, उनके वाहक देव, गति, ऋद्धि, तारान्तर स्थिति वगैरहका कथन है । ____ ग्यारहवें अधिकारमें जम्बूद्वीपके तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेवोंकी जघन्य तथा उत्कर्षसे संख्या बतलाकर यह बतलाया है कि चक्रवर्ती कितनी निधियों और रत्नोंका उपभोग करता है । अन्तमें जम्बूद्वीपके आयाम आदि बतलाकर उसकी शाश्वतता और अशाश्वतताकी पर्चाकी है।
सूत्र ४ में जीवाभिगम नामक सूत्रका नाम आया है । सूर्य प्रज्ञप्ति' ___यह भी एक उपांग है। इसका प्रारम्भ भी विल्कुल जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिकी ही तरह उन्हीं शब्दोंमें और उसी रूपमें हुआ है । इसमें वीस प्राभृत हैं । उनमें वर्णित विषयोंकी सूचना प्रारम्भमें ही पांच गाथाओंके द्वारा कर दी गई है। जो इस प्रकार हैं
१. सूर्य वर्षभरमें कितने मण्डल चलता है । २. सूर्य तिर्यग्गमन कैसे करता है ३. सूर्य कितने क्षेत्रको प्रकाशित करता है। ४. प्रकाशकी स्थिति कैसी है। ५. सूर्यकी लेश्या (तेज) कहाँ प्रतिहत होती है। ६. सूर्यके ओजकी कैसी स्थिति है । ७. सूर्यके वरणके विषयमें विप्रतिपत्तियां, ८. सूर्यके उदयके विषयमें विप्रतिपत्तिर्या ९. सूर्यकी पौरुषी छायाका प्रमाण । १०. सूर्यका नक्षत्रादिके साथ योग ११. संवत्सरोंका आदि । १२. संवत्सर कितने हैं। १३. चन्द्रमाकी वृद्धि-हानि । १४. चन्द्रमाकी ज्योत्स्ना सबसे अधिक कव होती है । १५. चन्द्र सूर्य वगैरहमें शीघ्रगति कौन हैं । १६. चन्द्रकी लेश्या। १७. चन्द्र सूर्य वगैरहका च्यवन और उत्पत्ति । १८. भूमितलसे उनकी ऊँचाई । १९. चन्द्र सूर्य वगैरहकी संख्या । २०. चन्द्रादि का स्वरूप ।
१. सूर्य प्रज्ञप्ति मलगगिरिकी संस्कृत टीकाके साथ आगमोदय समितिसे प्रकाशित