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________________ भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : ५३ वायु कुमार देवों और उनकी देवांगनाओंकी क्रीड़ाके कारण पातालोंमें वायुका संक्षोभ होनेसे जलकी वृद्धि हानि बतलाई है। जम्बूद्वीपके सिवाय अन्य द्वीपोंका तो बहुत ही संक्षिप्त वर्णन त० वा० में हैं। नन्दीश्वर द्वीपके वर्णनमें त० वा.' (पृ० १९८) में वापिकाओंके चारों कोनों पर चार रतिकर वतलाये हैं । ति० प० (५।६७) में वापियोंके दोनों बाह्य कोनोंमें दो रतिकर बतलाये हैं और आगे लिखा है कि वे रतिकर प्रत्येक वापी के चार चार कोनोंमें चार होते हैं ऐसा लोक विनिश्चय कर्ता कहते हैं। त० वा० (१९९) में कुण्डलवर द्वीपके मध्यमें स्थित कुण्डलवर पर्वतका वर्णन है । ति० ५० (५।१२५) में लिखा है कि लोक विनिश्चयके कर्ता कुण्डल पर्वतका वर्णन अन्य प्रकारसे करते हैं उसे हम कहते हैं। और फिर इक्कीस गाथाओंसे उस वर्णनको कहा है। यह वर्णन त० वा० के वर्णनसे शब्दशः मिलता है। इसी तरह ति०प० ( ५।१६७ )में कहा है कि लोकविनिश्चयके कर्ता रुचकवर पर्वतका वर्णन अन्य प्रकारसे करते हैं उसे कहते हैं। तवा में भी रुचकवर पर्वतका वर्णन है जो लोकविनिश्चयगत वर्णनसे मिलता है । ज्योतिषी देवोंके वर्णनमें समतलसे चन्द्र, सूर्य आदिके विमानोंकी दूरी बतलानेके लिए तवा० (१० २१९ )में जो गाथा उदत की है वह ति०प०में नहीं है । साथ ही कुछ नक्षत्रोंके अन्तरालमें भी अन्तर है । त०वा० (१० २१९ में राहुविमानका बाहुल्य अढ़ाई सौ धनुष है। ति०५० ( ७।२०३ )के अनुसार यह लोकविनिश्चयके कर्ता आचार्यका कथन है । तत्त्वार्थवार्तिकमें ज्योतिषी देवोंके विमानोंका बाहुल्यादि, उनका परिवार, चार क्षेत्र, सूर्य, चन्द्रका मुहूर्तगति क्षेत्र, पुष्कर द्वीप पर्यन्त प्रत्येक द्वीप और समुद्रमें चन्द्र और सूर्यकी संख्या आदिका कथन है । ति०प० ( अ० ७, पृ० ७६१ )में बाह्य पुष्कारार्ध द्वीपके प्रथम बलयमें चन्द्र और सूर्योंका प्रमाण १४४, १४४ बतलाया है । किन्तु त०वा. (पृ० २२०)में बाह्य पुष्करार्धमें चन्द्र, सूर्य केवल ७२-७२ ही बतलाये हैं । १. 'एतद् वापीकोणसमीपस्थाः प्रत्येकं चत्वारो नगा रतिकराख्याः'-तवा०, पृ० १९८। 'ते चउचउकोणेसु एक्केक्कदहस्स होंति चत्तारि। लोग विणिच्छयकत्ता एवं णियमा परूवेति' ॥६९।-ति०प० ५। २. 'राहुविमानान्येकयोजनायामविष्कम्भाण्यर्धतृतीयधनुःशतबाहुल्यानि'-त०वा०, पृ० २१९ । पण्णासाधियदुसया कोदंडा राहुणयरबहलत्तं । एवं लोयविणिच्छय कत्तायरिओ परूवेदि ॥२०३॥-ति०प०७।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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