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________________ भूगोल -खगोल विषयक साहित्य : २७ महामण्डलीक, अर्धचक्री और चक्रवर्ती ये राजपद गिनाकर प्रत्येककी परिभाषा दी है - जो भक्ति युक्त अट्ठारह सेनाओंका स्वामी होता है, रत्नजटित मुकुट धारण करता है, सेवा करने वालोंको वृत्ति और अर्थ देता है तथा युद्ध स्थल में शत्रुओंको जीतता है वह राजा है । पाँचसी राजाओंका स्वामी एक हजार राजाओंका पालक महाराज है । दो हजार राजाओंका अधिपति अर्धमण्डलीक है । इसी तरह दूने-दूने राजाओंके स्वामी मण्डलीक आदि कहे जातें हैं । अधिराज है । हाथी, घोड़ा, रथ इनके अधिपति, सेनापति, पदाति, श्रेष्ठी, दण्डपति, शूद्र, क्षत्रिय, वैश्य, महत्तर, प्रवर (ब्राह्मण), गणराज, मन्त्री, तलवर, पुरोहित, अमात्य और महामात्य ये अट्ठारह श्रेणियां हैं ॥४३-४४॥ इससे प्राचीन भारतके राजानुक्रमकी व्यवस्थाका पता चलता है । द्रव्यकी मापका मूल परमाणु है । परमाणुका स्वरूप ग्रन्थकारने तीन-चार गाथाओंके द्वारा बतलाया है— जो अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्रके द्वारा भी छेदा-भेदा नहीं जा सकता तथा जो जल और अग्निके द्वारा भी नाशको प्राप्त नहीं होता वह परमाणु है ( गा० १।९६) । जिसमें एक रस, एक वर्ण, एक गंध किन्तु दो स्पर्श गुण होते हैं. जो स्वयं शब्द रूप न होकर भी शब्दका कारण हैं वह परमाणु है ( गा० ११९७ ) । जो आदि अन्त और मध्य से रहित है, एक प्रदेशी है, इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकतां तथा विभाग रहित हैं, वह परमाणु है ( ९८ ) । अनन्तानन्त' परमाणुओंसे एक उवसन्नासन्न नामक स्कन्ध उत्पन्न होता है । आठ उवसन्नासन्नोंसे सन्नासन्न नामक स्कन्ध उत्पन्न होता है । आठ सन्नासन्नोंसे एक त्रुटिरेणु, आठ त्रुटिरेणुओंसे एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणुओंसे एक रथरेणु, आठ रथरेणुओंका एक उत्तम भोगभूमिके मनुष्य के बालका अग्रभाग, उक्त आठ वालग्रभागोंका एक मध्यम भोगभूमिके मनुष्यका बालाग्र इन आठ बालाग्रोंका एक जघन्य भोगभूमिके मनुष्यका बालाग्र, इन आठ बालाग्रोंकी एक लीक, आठ लीककी एक जूँ, आठ जूँका एक जौं और आठ जौंका एक उत्सेध अंगुल होता है । ( गा० १०२ - १०६) । १. अनुयोगद्वार सूत्र १०१ में भी उक्त कथन है मगर कुछ अन्तरको लिए हुए हैं । तत्वार्थवार्तिक ( ३।३८) पृ० २०७ पर भी उक्त कथन है । जहाँ एक ओर वह ति०प० से मिलता है वहाँ कुछ भेदको भी लिए हुए हैं और कुछ अंश उसका अनुयोगद्वारसे मिलता है ।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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