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तत्त्वार्थविषयक टीका-साहित्य : ३५३ स्तेय और परिग्रह का लक्षण बतलाने वाले सूत्रों (७.१५, १७) की व्याख्या में सर्वार्थसिद्धिमें जो शंका समाधान किया गया है, उसे भी ग्रन्थकारने ज्यों का त्यों अपना लिया है।
तीसरे अध्यायमें अहिंसा आदि व्रतों का सामान्य कथन करके चौथे अध्यायमें उसके अणुव्रत और महाव्रत भेदोंका निर्देश मात्र करके ग्रन्थकारने मिथ्यात्व नामक शल्य का कथन करने के व्याजसे अनेक दार्शनिक मन्तव्योंकी चर्चा विस्तार से की है। आत्माकी नित्यता तथा क्षणिकता, बौद्धोंका शून्यवाद, चार्वाकका जड़वाद, सांख्यमत, मीमांसकोंका सर्वज्ञाभाववाद, वेदकी अपौरुषेयता, और जगत् कर्तृत्ववादका निराकरण करनेके साथ ग्रन्थकारने श्वेताम्बरोंके केवली कवलाहारवाद और स्त्री मुक्तिवाद की भी आलोचना की है। इस तरह यह अध्याय केवल दार्शनिक चर्चाओं से भरा है।
पांचवे अध्यायसे जीवादि तत्त्वोंका वर्णन प्रारम्भ होता है। जीवका स्वरूप बतलाते हए उसे कर्ता, अमर्त, भोक्ता, स्वदेह प्रमाण, उपयोगमय, संसारी और ऊर्ध्वगामी बतलाया है। (श्लो० १९)। और लिखा है कि भाट्ट और नास्तिक जीवको मूर्त मानते हैं इस लिये अमूर्त कहा है (२०)। योग शुद्ध चैतन्यमय मानते हैं इस लिये उपयोगमय कहा है (२२)। सांख्य जीवको अकर्ता मानता है इस लिये कर्ता पद दिया है (२१) योग भाट्ट और सांख्य जीवको व्यापी मानते हैं इसलिये स्वदेह प्रमाण कहा है, इत्यादि। आगे त० सू० के दूसरे अध्यायके टीका ग्रन्थोंके अनुसार सब कथन किया गया है। त० सू० के प्रथम अध्यायमें चार निक्षेपोंका कथन है। यहां श्लो० १०३-१०७ में उसको स्थान दिया गया है।
छठे अध्यायमें नरक लोक का, सातवें में मध्यलोकका, और आठवेंमें देवलोकका वर्णन है । नौवें अध्यायमें अजीव, आस्रव, और बन्ध तत्त्वका वर्णन है। दसवें अध्याय में निर्जरा तत्त्वका वर्णन करते हुए तपके वर्णनके प्रसंगसे प्रायश्चित्त का वर्णन बहुत विस्तारसे किया है जो अन्यत्र हमारे देखनेमें नहीं आया। वही इस अध्यायका मुख्य प्रतिपाद्य विषय है। ग्यारहवें अध्यायमें विनयतपसे लेकर ध्यान तप का वर्णन है। और बारहवें अध्यायमें मरणके भेदोंका तथा समाधि मरणका वर्णन भगवती आराधनाके अनुसार किया है और 'आराधनामहाशास्त्रवाचनादत्तमानसः' लिखकर उसका निर्देश भी कर दिया है।
इस तरह तत्त्वार्थसारसे इसमें अधिक विषयोंका प्रतिपादन है। और तत्त्वार्थसारमें चर्चित विषयोंका प्रतिपादन भी कहीं-कहीं विशेष विस्तार से किया है । सारांश यह है कि अपने पूर्वज अनेक गन्थकारोंकी रचनाओंका उपयोग इस ग्रन्थमें