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________________ तत्वार्थविषयक टीका-साहित्य : ३४९ रचना काल शक सं० १२६३ (वि० सं० १३९८) दिया है अतः डॉ० उपाध्ये इन टीकाओंका रचना काल ईसाकी १४वीं शतीका प्रथम चरण बतलाते हैं। किन्तु स्व. पं. महेन्द्र कुमारजी' न्यायाचार्यने प्रवचन सरोज भास्करको न्याय कुमुद चन्द्रके कर्ता प्रभाचन्द्रकी ही कति माना है, और श्री युत नाथूरामजी प्रेमी तथा पं० परमानन्दजीका भी यही मत है । और हम भी इसी मतसे सहमत हैं । कारण नीचे दिये जाते है । १. प्रवचनसारसरोजभास्कर नाम न्याकुमुदचन्द्र, प्रमेयकमलमार्तण्ड, शब्दाम्भोजभास्कर जैसे नामोंका ही वंशज प्रतीत होता है। ये तीनों ग्रन्थ निश्चित रूपसे पद्मनन्दिसैद्धान्तिकके शिष्य प्रभाचन्द्र रचित हैं। २. प्रवचनसार स० भास्करमें ही नहीं, किन्तु चारों टीकाओंमें ग्रन्थान्तरोंसे उद्धृत पद्योंकी संख्या अत्यन्त सीमित है, फिर भी प्र० भास्करमें जो दो चार उद्धरण हैं वे दार्शनिक हैं । यथा-'नाशोत्पादौ समं यद्वन्नामोन्नामो तुलान्तयोः' 'अनेन पुरुषत्रामाण्याद्वचनप्रामाण्यमित्युक्तम् । श्रुतमस्पष्टतर्कणम् इत्यभिधानात् । ये अवतरण उनके अन्य ग्रन्थोंमें भी पाये जाते हैं । व्याख्याशेलीमें भी दार्शनिकताकी पु. है । यथा -- 'ननु चात्मा परिणाम्येवातः कि तत्र परिणामप्रसाधनप्रयासेनेति सांख्याः । परिणाम एव वा न ततोऽर्थान्तरात्मेति बौद्धास्तान्प्रत्याह-(गाथा १०) 'यदि हि द्रव्यं स्वयं सदात्मकं न स्यात् तदा स्वयमसदात्मकं सत्तातः पृथक वा ? तत्राद्यः पक्षो न भवति, यदि सत् सद्रूपं द्रव्यं न भवति तदा असत् असदूपं ध्रुवं निश्चयेन तत् भवति । कथं केन प्रकारेण द्रव्यं खरविषाणवत् । 'हवदि पुणो अण्णं वा' । अथ सत्तातः पुनरन्यद्वा पृथक् भूतं वा द्रव्यं भवति तदा ततः पृथग्भूतस्यापि सत्त्वे सत्ताकल्पना व्यर्था । सत्तासम्बन्धतस्तत्सत्वे चान्योन्याश्रयः-सिद्ध हि तत्सत्त्वे सत्तासम्बन्धमिद्धि: तस्य व सत्त्वं च (?) सिद्धो सत्यां तत्सत्वसिद्धिरिति । तत्सत्वसिद्धिमन्तरेणपि सत्तासम्बन्धे खपुष्पादेरपि तत्प्रसंगः । तस्मात् द्रव्यं स्वयं सत्ता-स्वयमेव सद्रूपमभ्युपगन्तव्यं न पुनः सत्तातः पृथग्भूतं-' (गा० २०१२) ___ यह शैली बराबर पद्मनन्दि शिष्य दार्शनिक प्रभाचन्द्रकी है। पञ्चास्तिकाय प्रदीपमें भी इस प्रकारकी शैलीके दर्शन होते हैं । यथा १. न्या० कु० च०, भाग २ की प्रस्ता०, पृ० ६३ २. जै० सा० इ०, पृ० २९० । ३. जै० प्र० प्र० सं० की प्रस्ता०, पृ० ६४ आदि ।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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