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भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : २३ इस अधिकारमें ३४३ पद्य हैं। जिनमें दो इन्द्रवज्रा, चार उपजाति और शेष गाथाएं हैं।
मनुष्य लोक नामक चौथे महा अधिकार में सोलह अवान्तर अधिकारों के द्वारा जम्बू द्वीप, लवण समुद्र, धातकी खण्ड द्वीप, कालोद समुद्र, पुष्करार्द्ध द्वीप, इन द्वीपों में रहने वाले मनुष्यों के भेद, उनकी संख्या, उनका अल्पबहुत्व, उनके गुण स्थान वगैरह, आयुबन्ध में निमित्त परिणाम, योनियाँ, सुख, दुःख, सम्यग् दर्शन ग्रहण करने के कारण, और मनुष्य लोक से मुक्ति प्राप्त करने वाले जीवों की संख्या आदि का कथन है ।
यह अधिकार भूगोल सम्बन्धी वर्णनों से सम्बद्ध है। अन्य भी कई दृष्टियों से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसका विस्तार भी सबसे अधिक है। इसी से इसकी पद्य संख्या ३९६१ है। जिनमें ७ इन्द्रवज्रा, दो दोधक, १ शार्दूलविक्रिडित २ वसन्त तिलका और शेष गाथाएँ हैं ।
तृतीय सुषम दुषमा काल का अन्त निकट आने पर भोगभूमि से इसमें जो भरत क्षेत्र के आर्य खण्ड में होने वाले काल परिवर्तन का वर्णन है वह ऐतिहासिक दृष्टि से भी अवलोकनीय है उसका कथन आगे करेंगे।
जम्बूद्वीप के वर्णन के पश्चात् लवण समुद्र का वर्णन है। लवण समुद्र के मध्य में चारों दिशाओं में चार उत्कृष्ट पाताल हैं, विदिशाओं में चार मध्यम पाताल हैं। और उनके बीच में एक हजार जघन्य पाताल है। प्रत्येक पाताल के नीचे के विभाग में वायु, मध्यम विभाग में जल और वायु तथा ऊपर के विभाग में केवल जल रहता है।
पातालों की वायु स्वभाव से शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन २२२२३ योजन मात्र वृद्धि को और कृष्ण पक्ष में उतनी ही हानि को प्राप्त होती है। इस प्रकार पूर्णिमा के दिन नीचे के दो त्रिभागों में वायु जल और ऊपर के एक त्रिभाग में जल रहता है। तथा अमावस्या के दिन उपरिम दो त्रिभागों में जल और नीचे के विभाग में वायु रहती है। इसी से समुद्र में जल की हानि और वृद्धि होती है। ___लवण समुद्र के अभ्यन्तर भाग में और बाह्य भाग में २४-२४ अन्तर्वीप बतलाये हैं। इनमें कुमनुष्य रहते हैं। उनके विचित्र आकार बतलाये हैं।
१. 'हे मुनि सत्तम ! अतल, वितल, नितल, गभस्तिमान, महातल, सुतल और
पाताल इन सातों में से प्रत्येक पाताल दस दस सहस्र योजन की दूरी पर है। उनमें दानव, दैत्य, यक्ष और बड़े बड़े नाग आदिकी सैकड़ों जातियाँ निवास करती है।'-वि० पु०, १ अंश, ५ अ० ।