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________________ ३३६ : जेनसाहित्यका इतिहास अद्वितीय ज्ञाता ही मोक्षमार्ग है । अन्तमें समय प्राभृतको टोकाको तरह एक श्लोक इस आशयका दिया कि-'वर्णोसे पद बने, पदोंसे वाक्य बने और वाक्योंसे शास्त्र बना । अतः वाक्य ही इस शास्त्रके कर्ता हैं, हम नहीं। इस ग्रन्थमें ग्रन्थकारने यद्यपि अपना नाम नहीं दिया है तथापि उक्त शैलीसे यह स्पष्ट है कि इसके कर्ता अमृतचन्द्र हैं। ___अमृतचन्द्रके समयके सम्बन्धमें पीछे विस्तारसे प्रकाश डाला जा चुका है वह स्वामी विद्यानन्दके पश्चात् और आलापपद्धतिकार देवसेनसे पहले होने चाहिये । उन्होंने विद्यानन्दके तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकका उपयोग अपने तत्त्वार्थसारमें किया है यह हम पीछे लिख आये हैं । विद्यानन्दने अपने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकको प्रशस्तिमें पश्चिमी गंगवंशी नरेश श्रीपुरुषके उत्तराधिकारी शिवमार द्वितीय का उल्लेख किया है । शिवमार द्वितीयका समय ई० ८१० ( वि० सं० ८६७) है और देवसेनने अपना दर्शनसार वि० सं० ९९० में रचा था। अतः वि० सं० ८६७ के पश्चात् और वि० सं० ९९० से पूर्व अमृतचन्द्र हुए हैं। . द्रव्य' संग्रह __ मुनि नेमिचन्द्र रचित द्रव्यसंग्रह नामका एक छोटासा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ जैन समाजमें बहुत प्रचलित है। इस ग्रन्थमें केवल ५८ प्राकृत गाथाएँ हैं । ग्रन्थको अन्तिम गाथामें ग्रन्थकारने अपना तथा ग्रन्थका नाममात्र दिया है। कर्ता उसमें ग्रन्थका नाम द्रव्यसंग्रह दिया है। इस ग्रन्थके ऊपर ब्रह्मदेवरचित संस्कृत वृत्ति है । उसके प्रारम्भमें वृत्तिकारने ग्रन्थका परिचय देते हुए लिखा है'अथ मालवदेशे धारानाम-नगराधिपतिराज-भोजदेवाभिधान-कलिकालचक्रवति सम्बन्धिनः श्रीपालमण्डलेश्वरस्य सम्बन्धन्याश्रमनामनगरे श्री मुनिसुव्रततीर्थकर चैत्यालये शुद्धात्मद्रव्यसंवित्तिसमुत्पन्नसुखामृतरसास्वादविपरीतनारकादि दुःखभयभीतस्य परमात्मभावनोत्पन्नसुखसुधारसपिपासितस्य भेदाभेदरत्नत्रय१. संस्कृतटीका तथा हिन्दी टीकाके साथ द्रव्यसंग्रह रायचन्द्र शास्त्रमाला बम्बईसे प्रकाशित हुआ था। उसके बाद दिल्लीसे वि० सं० २०१० में और खरखरी ( झरिया) से प्रकाशित हुआ है। मूल द्रव्यसंग्रह भाषा टीका सहित अनेक स्थानोंसे प्रकाशित हुआ है। तथा अंग्रेजी अनुवाद और विस्तृत प्रस्तावनाके साथ आरासे प्रकाशित हुआ था। २. 'द्रव्यसंगहमिणं मुणिणाहा दोससंचयचुदा सुद पुण्णा। सोधयंतु तणुसुत्तधरेण मिचंदमुणिणा भणियं जं ।'
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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