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________________ तत्त्वार्थविषयक टीका-साहित्य : ३३३ रचमा भी की है। उनकी तीन टीकाओंके सिवाय दो ग्रन्थ उपलब्ध हैं । उनमेंसे एक ग्रन्थका नाम पुरुषार्थ सिद्धयुपाय है जो श्रावकाचार विषयका अपूर्व ग्रन्थ है और दूसरा है तत्वार्थसार । इसमें आचार्यने तत्त्वार्थसूत्रका सार भर दिया है । अतः इसका यह नाम सार्थक है। जैनवाङमयमें कुन्दकुन्दके उक्त तीनों ग्रन्थोंका जैसा महत्व हैं वैसा ही महत्व तत्त्वार्थसूत्रका भी है। अतः अमृतचन्द्राचार्यने कुन्दकुन्दके ग्रन्थों पर तो टीकाएं रचकर एक कमीकी पूर्ति की, क्योंकि उन ग्रन्थोंपर तब तक कोई टीका नहीं रची गई थी। किन्तु तत्त्वार्थसूत्र पर तो पूज्यपादकी सवार्थसिद्धि और अकलंकदेवका तत्त्वार्थवार्तिक जैसे महान व्याख्या ग्रन्थ रचे जा चुके थे । अतः अमृतचन्द्रने उस ग्रन्थके महत्त्वको हृदयंगम करके एक स्वतंत्र ग्रन्थके रूपमें उसका सार सरल संस्कृत भाषाके अनुष्टुप श्लोकोंमें बहुत ही सुन्दर रीतिसे निबद्ध कर दिया और इस तरह कुन्दकुन्दके ग्रन्थोंकी तरह तत्त्वार्थसूत्रका रहस्यभी सुगम बना दिया। मंगलाचरणके पश्चात् ग्रन्थका नाम तथा उद्देश्य बतलाते हुए लिखा है 'अथ तत्त्वार्थसारोऽयं मोक्षमार्गकदीपकः । मुमुक्षूणां हितार्थाय प्रस्पष्टमभिधीयते ॥२॥' अर्थात् 'यह तत्त्वार्थसार नामक ग्रन्थ मोक्षमार्गको प्रकाशित करनेके लिये एक दीपकके तुल्य है। मुमुक्षुओंके हितके लिये मैं इसे अति स्पष्ट रूपसे कहता हूँ।' तत्त्वार्थसूत्रके दस अध्यायोंमें सात तत्त्वोंका वर्णन है। तत्त्वार्थसारमें भी सात तत्त्वोंका क्रमसे वर्णन है। पहला 'सप्ततत्त्वपीठिकाबन्ध' नामक अधिकार है, फिर क्रमसे जीवादि सात तत्त्वोंके वर्णनको लिये हुए सात अधिकार हैं और अन्त में उपसंहार है। प्रत्येककी श्लोक संख्या क्रमसे ५४ + २३८ + ७७ + १०५ + ५४ + ५२ + ६० + ५५ + २३ = ७१८ है । यों तो तत्त्वार्थसारका मुख्य विषय वही है जो तत्त्वार्थसूत्र का है, तथापि अमृतचन्द्रसूरिने उसमें प्रसंगवश अनेक ऐसी बातोंका भी संकलन किया है, जो न तो तत्त्वार्थसूत्रमें पाई जाती हैं और न उसकी टीकाओंमें पाई जाती हैं । इसके साथ अमृतचन्द्र अध्यात्मके माने हुए विद्वान थे । अतः उनकी कृति भी अध्यात्मकी छापसे अछूती कैसे हो सकती है ।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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