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तत्त्वार्थविषयक टीका-साहित्य : २९३ अदहदमोघवर्षोऽरातीन् ।-शाकटायन (४-३-२००)
अरुणत् सिद्धराजोऽवन्तिम् ।-हैम० (५-२-८) इनमें अन्तिम दो उदाहरण सर्वथा स्पष्ट हैं। आचार्य पाल्यकीति (शाकटायन) महाराज अमोघ वर्ष और आचार्य हेमचन्द्र महाराज सिद्धराजके कालमें विद्यमान थे । इसमें किसीको विप्रतिपत्ति नहीं । परन्तु चान्द्रके जर्त और जैनेन्द्रके महेन्द्र नामक व्यक्तिको इतिहासमें प्रत्यक्ष न पाकर पाश्चात्य मतानुयायी विद्वानोंने जर्तको गुप्त और महेन्द्रको मेनेन्द्र-मिनण्डर बनाकर अनर्गल कल्पनाएं की हैं । इस प्रकारकी कल्पनाओंसे इतिहास नष्ट हो जाता है । हमारे विचारमें जैनेन्द्रका 'अरुणन्महेन्द्रो मथुराम्' पाठ सर्वथा ठीक है। उसमें किञ्चिन्मात्र भ्रान्तिकी सम्भावना नहीं है। आचार्य पूज्यपादके कालकी यह ऐतिहासिक घटना इतिहासमें सुरक्षित है।।
मथुरा पर आक्रमण करनेवाले यह महेन्द्र कौन थे, इस पर प्रकाश डालते हुए श्री मीमांसकने लिखा है
'जैनेन्द्र में स्मृत महेन्द्र गुप्तवंशीय कुमारगुप्त हैं। इसका पूरा नाम महेन्द्र कुमार है । जैनेन्द्रके 'विनाऽपि निमित्तं पूर्वोत्तरपदयोर्वा खं वक्तव्यम् ४-१-१३) वार्तिक अथवा 'पदेषु पदैकदेशान्' नियमके अनुसार उसीको महेन्द्र अथवा कुमार कहते थे। उसके सिक्कोंपर श्री महेन्द्र,' महेन्द्रसिंह, महेन्द्रवर्मा, महेन्द्रकुमार आदि कई नाम उपलब्ध होते हैं । तिब्बतीय ग्रन्थ चन्द्रगर्भ सूत्रमें लिखा है"यवनों पल्हिकों शकुनों (कुशनों) ने मिलकर तीन लाख सेनासे महेन्द्रके राज्य पर आक्रमण किया। गंगाके उत्तर प्रदेश जीत लिये । महेन्द्रसेनके युवा कुमारने दो लाख सेना लेकर उनपर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। लौटनेपर पिताने उसका अभिषेक कर दिया।"२ चन्द्रगर्भ सूत्रका महेन्द्र निश्चय ही कुमारगुप्त है और उसका युवराज स्कन्दगुप्त । मंजुश्री मूलकल्प श्लोक ६४६ में श्री महेन्द्र और उनके सकारादि पुत्र (स्कन्दगुप्त) को स्मरण किया है।"
अतः श्री युधिष्ठिरजीका कहना है कि-'चन्द्रगर्भ सूत्रमें लिखित घटनाकी जैनेन्द्र के उदाहरणमें उल्लिखित घटनाके साथ तुलना करनेपर स्पष्ट हो जाता है कि जैनेन्द्रके उदाहरणमें इसी महत्त्वपूर्ण घटनाका संकेत है। उक्त उदाहरणसे यह भी विदित होता है कि विदेशी आक्रान्ताओंने गंगाके आस-पासका प्रदेश जीतकर मथुराको अपना केन्द्र बनाया था, इस कारण महेन्द्रकी सेनाने मथुराका १. श्री पं० भगवद्दत्तकृत भारतवर्षका इतिहास, पृ० ३५४ । २. वही, पृ० ३५४ । ३. महेन्द्रनृपवरो मुख्यः सकाराद्यो मतः परम् ।'