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________________ २९० : जैनसाहित्यका इतिहास प्रसिद्ध ही हैं। सिद्धसेन भी उन्हींके पश्चात् हुए है। श्रीदत्तके जल्पनिर्णय नामक ग्रन्थका उल्लेख विद्यानन्दिने अपने तत्त्वार्थ श्लोकवातिकमें किया है। तथा अकलंकदेवने अपने तत्त्वार्थ वार्तिकमें सिद्धसेनसे पहले श्रीदत्तका उल्लेख किया है। ४. आचार्य जिनसेनने अपने महापुराणके प्रारम्भमें क्रमसे सिद्धसेन, समन्तभद्र, श्रीदत्त, यशोभद्र और प्रभाचन्द्र का स्मरण किया है, पश्चात् 'देव' नामसे पूज्यपाद देवनन्दिका भी स्मरण किया है। जिनसेनने अपना महापुराण विक्रमकी नौवीं शताब्दीके अन्तमें रचा था। अतः पूज्यपाद नौवीं शताब्दीसे पूर्व तथा जैनेन्दोक्त आचार्योके पश्चात् किसो समय हुए हैं। ५. धनञ्जय कविने अपने नाममाला कोशके अन्तमें पूज्यपादके लक्षणको अकलंकके प्रमाणको 'अपश्चिम' कहा है अतः पूज्यपाद धनञ्जय कविसे पूर्व में हुए हैं और अकलंकदेवने उनकी सर्वार्थ सिद्धिके अनेक वाक्योंको अपने तत्त्वार्थवार्तिको वार्तिक रूपसे अपनाया है । अकलंक देवका समय विक्रमकी आठवीं शताब्दी है अतः पूज्यपाद उससे पहले हुए हैं। अब विचारणीय यही रह जाता है कि पूज्यपाद सिद्धसेनसे कितने समय पश्चात हुए हैं। ६. श्री पं० जुगल किशोरजी मुख्तारने अपने 'समन्तभद्र" नामक निबन्धमें तथा समाधि तंत्रकी प्रस्तावनामें लिखा है कि पूज्यपाद स्वामी गंगराज दुविनीतके शिक्षा गुरु थे जिसका राज्यकाल ई० सन् ४८२ से ५२२ तक पाया जाता है। और उन्हें हेब्बुर आदिके अनेक शिलालेखोंमें शब्दावतारके कर्ता रूप से दुविनीत राजाका गुरु उल्लेखित किया है।' १. "द्विप्रकारं जगौ जल्पं तत्त्वप्रातिभगोचरम् । त्रिषष्ठेर्वादिनां जेता श्रीदत्तो जल्पनिर्णये ।।४५।।-त० श्लो० १० २८० । २. 'श्रीदत्तमिति, सिद्धसेनमिति'-त० वा०, पृ० ५७ । ३. म० पु०१, ४२-४७ । ४. 'प्रमाणमकलङ्कस्य पूज्यपादस्य लक्षणम् । धनञ्जयकवेः काव्यं रत्नत्रयमपश्चिमम् ।।२०२॥-ना० मा० । ५. र०क०श्रा०, की प्रस्ता०, के अन्तर्गत, पृ० १४२-४२ । ६. स० तं० की प्रस्ता०, पृ० ७। ७. 'कुर्ग इन्सक्रिप्शन्स' प्रस्ता० पृ. ३ । 'मैसूर एण्ड कुर्ग जि० १, पृ० ३७३ । 'कर्णाणटक भाषा भूषाम् प्रस्ता० पृ० १२ । 'हिस्टरी आफ कनडीज लिटरेचर' पृ० २५ और कर्णाटक कविचरिते।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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