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२८८ : जनसाहित्यका इतिहास सूत्रके प्रत्येक पदकी सार्थकता बतलाते हुए पूज्यपादने जैनकर्मसिद्धान्त विषयक कई शङ्काओंका परिहार किया है। सूत्रमें कहा गया है-'कषाय सहित होनेसे जोव कर्मोके योग्य पुद्गलोंको ग्रहण करता है, वह बन्ध है ।' 'कषाय सहित होने से ( सकषायत्वात् ) पदका साफल्य बतलाते हुए कहा है कि जैसे उदराग्निके आशयके अनुरूप आहार ग्रहण किया जाता है वैसे ही तीब्र मन्द अथवा मध्यम कषायाशयके अनुरूप कर्मोमें स्थिति और फल देनेकी शक्ति होती है । ___ अमूर्ति और विना हाथवाला आत्मा कर्मोको कैसे ग्रहण करता है इस तर्कणा के समाधानके लिये जीव शब्द रखा है । जो जिये और मरे वह जीव है । अर्थात् संसारमें भटकने वाले जीवोंके ही कर्मोका बन्ध होता है। ___ 'कर्मयोग्यान्' न कहकर 'कर्मणो योग्यान् कहनेसे पूज्यपादने सूत्रकारका यह अभिप्राय बतलाया है कि वह उसके द्वारा दो बातें कहना चाहते हैं पहली बातकर्मके कारण ही जीव सकषाय ( कषायवाला ) होता है। जो कर्मोसे रहित है उसके कषाय भी नहीं है। इससे जीव और कर्मका सम्बन्ध अनादि है यह बात कही गई है। अतः अमूर्तिक जीव मूर्तिक कर्मके द्वारा कैसे बांधा जाता है यह तर्क निरस्त हो जाता है। यदि कर्मबन्धको सादि माना जाता है तो अत्यन्त शुद्ध सिद्ध जीवकी तरह संसारी जीवके भी बन्धके अभावका प्रसंग आता है । और दूसरी बात-कषायसहित होनेसे कर्मके योग्य पुद्गलोंको ग्रहण करता है ।
पुद्गल शब्द यह बतलाता है कि कर्म पौद्गलिक हैं । अतः जो अन्य दार्शनिक अदृष्टको आत्माका गुण मानते हैं उनका निराकरण हो जाता है ।
इस तरहसे पूज्यपादने इस सूत्रका व्याख्यान किया है । इसी तरह नोर्वे और दसवें अध्यायोंकी व्याख्यामें भी अनेक सैद्धान्तिक बातोंका कथन बहुत संक्षेपसे किन्तु सुन्दर सुस्पष्ट रीतिसे किया गया है ।
समय-पूज्यपाद देवनन्दिने अपने ग्रन्थोंमें अपना नामतक भी नहीं दिया, तब अपनी गुरू परम्परा और रचनाकाल आदि दिये जानेकी आशा उनसे कैसे की जा सकती है। ऐसी स्थितिमें उनके समयका निर्णय उनके ग्रन्थोंके उल्लेखों तथा अन्य साधनोंसे ही करना पड़ता है।
१. पूज्यपादके समाधि तंत्र और इष्टोपदेशका कुन्दकुन्दके ग्रन्थोंके साथ तुलनात्मक अध्ययन करनेसे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि पूज्यपादने कुन्दकुन्दाचार्यके वाक्योंका बहुत कुछ अनुसरण किया है । पीछे इन दोनों ग्रन्थोंके सम्बन्धमें लिखते हुए अनेक उदाहरणों द्वारा यह बात प्रमाणित की गई है फिर भी यहाँ स्पष्टीकरणके लिये एक दो उदाहरण दे देना उचित होगा।