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________________ तत्त्वार्थविषयक टीका-साहित्य : २७७ माधवभट्ट नामक ब्राह्मण और श्रीदेवी ब्राह्मणी उनके पिता और माता थे। पाणिनि माधवभट्टके साले थे। पाणिनि अपने व्याकरणको पूरा किये बिना ही मर गये तब पूज्यपादने उसे पूरा किया। पाणिनि पूज्यपादसे लगभग एक हजार वर्ष पूर्व हुए हैं । पाणिनि व्याकरण पर रचित कात्यायनके वार्तिक सर्वार्थसिद्धिमें उद्धृत है । अतः उक्त कथा विश्वसनीय नहीं है । कथामें चमत्कार प्रदर्शक अन्य भी अनेक बातें हैं । यथा पूज्यपाद स्वामी पैरोंमें लेप लगाकर आकाश मार्गसे विदेह क्षेत्र जाया करते थे। एकबार उनकी दृष्टि नष्ट हो गई तो शान्त्यष्टकके पाठसे वह पुन. प्राप्त हो गई। उनके चरणोंको देव पूजते थे। उन्हें औषधऋद्धि प्राप्त थी। इनमेंसे कुछ बातोंका शिलालेखोंमें भी उल्लेख मिलता है। रचित ग्रन्थ-श्रवणवेलगोलाके शिलालेख (४०) में पूज्यपादका स्तवन करते हुए लिखा है-जिनका जैनेन्द्र' (व्याकरण) शब्द शास्त्रोंमें अपने अतुलित भागको, सर्वार्थसिद्धि सिद्धान्तमें परम निपुणताको, जैनाभिषेक ऊंचे दर्जेके कवित्वको, छन्दशास्त्र बुद्धिकी सूक्ष्मताको और समाधि शतक जिनकी स्वस्थता (स्वात्मस्थिति) को विद्वानों पर प्रकट करता है वे श्री पूज्यपाद मुनीन्द्र मुनियोंके गणोंसे पूजनीय हैं।' इससे जहाँ पूज्यपाद रचित जैनेन्द्र व्याकरण, सर्वार्थसिद्धि, जैनाभिषेक, छन्द शास्त्र और समाधि शतक नामक ग्रन्थोंका पता चलता है वहाँ उनके सर्व शास्त्र विषयक पाण्डित्य का भी पता चलता है। वे वैयाकरण थे, जैन सिद्धान्तके मर्मज्ञ थे, कवि थे, सूक्ष्मबुद्धि थे और इतना सब कुछ होनेके साथ ही साथ अध्यात्मरत भी थे। इस तरह यद्यपि वे सर्वशास्त्र निष्णात थे, किन्तु सर्वत्र उनकी ख्याति शब्दशास्त्र विषयक पाण्डित्य को ही लेकर विशेष थी, यह बात ऊपर के स्मरणोंसे स्पष्ट है । मुग्धबोध के कर्ता बोपदेवने आठ वैयाकरणोंमें जैनेन्द्रका भी नामोल्लेख किया है । यह जैनेन्द्र व्याकरणके रचयिता पूज्यपाद देवनन्दि ही है। १. इस सम्बन्धमें विशेष जाननेके लिये देखो-'पाणिनि पतञ्जलि और पूज्य पाद' शीर्षक हमारा लेख-० सि० भा०, भाग ६, कि० ४, पृ० २१६ आदि। २. 'जैनेन्द्रं निजशब्दभागमतुलं सर्वार्थसिद्धिः परा, सिद्धान्त निपुणत्वमुद्ध कविता जैनाभिषेकः स्वकः । छन्दः सूक्ष्मधियं समाधिशतकं स्वास्थ्यं यदीयं विदामाख्यातीह स पूज्यपादमुनिपः पूज्यो मुनीनां गणः।-जै० शि० सं० भा० १, पृ० २५ ।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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