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२७८ : जेनसाहित्यका इतिहास
नगर ताल्लुकके शिलालेख (नं० ४६) में पूज्यपादका स्मरण करते हुए उनके द्वारा रचित कुछ अन्य ग्रन्थों का भी उल्लेख किया है। उसमें लिखा है-'जिन्होंने सकल बुधजनोंसे स्तुत जैनेन्द्र नामका न्यास बनाया, पुनः पाणिनिव्याकरण पर शब्दावतार नामका न्यास लिखा, तथा मनुष्य समाजके हितके लिये वैद्यक शास्तकी रचना की, और फिर तत्त्वार्थकी टीका रची, वे राजाओं से पूजनीय, स्वपरहितकारी वचन वाले और दर्शन ज्ञान चारित्र से पूर्ण पूज्यपाद स्वामी शोभायमान हैं।'
उक्त शिलालेखमें निर्दिष्ट ग्रन्थोंकी स्थिति चिन्य है । अतः उनकी रचनाओं पर यहाँ संक्षेपमें प्रकाश डाला जाता है
जैनेन्द्रव्याकरण-श्र० वे० गो० के शिलालेखमें पूज्यपादको जैनेन्द्र व्याकरणका रचयिता बतलाया है। महाकवि धनंजयने अपनी नाममालामें पूज्यपादके लक्षणग्रन्थ (व्याकरण) का उल्लेख किया है। गणरत्न महोदधिके कर्ता वर्धमान और हैम शब्दानुशासनके लघुन्यास बनाने वाले कनकप्रभ भी जैनेन्द्र व्याकरणके रचयिताका नाम देवनन्दि बतलाते हैं। अतः इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह व्याकरण देवनन्दि या पूज्यपादका बनाया हुआ है। ___ जैनेन्द्रकी जो हस्तलिखित प्रतियां पाई जाती हैं उसके प्रारम्भमें एक श्लोक मिलता है उसमें ग्रन्थकर्ताने भगवानके विशेषणरूपमें प्रयुक्त 'देवनन्दितपूजेशं' पदके द्वारा अपना नाम भी प्रकट कर दिया है। इससे भी जैनेन्द्रके कर्ता देवनन्दि ही ठहरते हैं।
जैनेन्द्रन्यास- ताल्लके के शिखालेखमें पूज्यपाद रचित जैनेन्द्र न्यासका भी निर्देश है । किन्तु यह अभी तक अनुपलब्ध है । उसी शिलालेखमें यह भी निर्देश है कि पूज्यपादने पाणिनि व्याकरणपर शब्दावतार नामक न्यास बनाया था । पाणिनि व्याकरणकी काशिका वृत्ति पर एक न्यास है उसके कर्ताका नाम भी १. 'न्यासं जैनेन्द्रसंजं सकलबुधनुतं पाणिनीयस्य भूयो
न्यासं शब्दावतारं मनुजततिहितं वैद्यशास्त्रं च कृत्वा । यस्तत्त्वार्थस्य टीकां व्यरचयदिह भात्यसो पूज्यपाद
स्वामी भूपालवन्द्यः स्वपरहितवचः पूर्णदृग्बोधवृत्तः।' २. जैनेन्द्र व्याकरण और उसके कर्ता पूज्यपादके सम्बन्ध में विशेष जानने के
लिये जै० सा० इ० में 'देवनन्दिका जैनेन्द्र व्याकरण' शीर्षक निबन्ध तथा जैनेन्द्र महावृत्ति' (भा० ज्ञा० पी० काशी) की भूमिका तथा उसीमें 'जैनेन्द्र शब्दानुशासन तथा उसके खिलपाठ' शीर्षक श्रीयुधिष्ठिर मीमांसकका लेख पढ़ने चाहिये।