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________________ २७४ : जेनसाहित्यका इतिहास करते हुए लिखा है-'श्री पूज्यपादने धर्मराज्यका उद्धार किया था, इसीसे आप देवोंके अधिपतिके द्वारा पूजे जाकर 'पूज्यपाद' कहलाये । उनके वैदुष्य आदि गुणोंको आज भी उनके द्वारा रचे हुए शास्त्र बतला रहे हैं। आप जिनेन्द्रकी तरह विश्वबुद्धिके धारक थे, कामदेवको जीतनेवाले थे और ऊंचे दर्जेके कृतकृत्यभावको धारण किये हुए थे। इसीसे योगियोंने आपको 'जिनेन्द्र बुद्धि' ठीक ही कहा था ।' आगे लिखा है-वे पूज्यपाद मुनि जयवन्त हों, जो अद्वितीय औषध ऋद्धिके धारक थे, विदेह स्थित जिनेन्द्र भगवानके दर्शनसे जिनका शरीर पवित्र हो गया था और जिनके चरण धोए जलके स्पर्शसे एक समय लोहा भी सोना बन गया था।' __आचार्य कुन्दकुन्दके प्रकरणमें यह लिखा जा चुका है कि विदेहगमनकी बात केवल कुन्दकुन्दाचार्यके सम्बन्धमें ही प्रवर्तित नहीं है, पूज्यपादके सम्बन्धमें भी प्रवर्तित है । जैसा कि शिलालेखके उक्त कथनसे व्यक्त होता है । अन्य आचार्यों के द्वारा स्मरण ___अनेक ग्रन्थकारोंने अपने ग्रन्थोंके आदिमें पूज्यपाद देवनन्दिका बड़े आदरके साथ स्मरण किया है। श्री जिनसेनाचार्यने' अपने आदिपुराणके प्रारम्भमें संक्षितनाम 'देव से उनका स्मरण करते हुए उन्हें कवियोंका तीर्थङ्कर कहा है । और उनके वचनमय तीर्थको अर्थात शब्द शास्त्ररूप व्याकरणको विद्वानोंके वचनमलको नष्ट करने वाला बतलाया है। इसी तरह वादिराज' सूरिने भी अपने पार्श्वनाथ चरितके आदिमें 'देव' घृतविश्वबुद्धिरयमत्र योगिभिः कृतकृत्यभावमनुविभ्रदुच्चकैः । जिनवद् बभूव यदनगचापहृत् स जिनेन्द्रबुद्धिरिति साधुवर्णितः ॥ १६ ॥ श्री पूज्यपादमुनिरप्रतिमौषद्धि र्जीयाद् विदेहजिनदर्शनपूतगात्रः । यत्पादधीतजलसंस्पर्शप्रभावात् कालायसं किल तदा कनकीचकार ॥ १७ ॥ -०शि० सं०, भा० १, पृ० २११ । १. 'कवीनां तीर्थकद्देवः कितरां तत्र वर्ण्यते । विदुषां वाङमलध्वंसि तीर्थ यस्य वचोमयम् ॥ ५२ ॥ -म० पु०, पर्व १॥ २. 'आचिन्त्यमहिमा देवः सोऽभिवन्धो हितैषिणा । शब्दाश्च येन सिद्धयन्ति साधुत्वं प्रतिलम्भिताः' ॥ १२ ॥ -पार्श्व० च०, १ सर्ग।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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