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________________ तत्त्वार्थविषयक मूलसाहित्य : २६१ अजीव आदि नौ तथ्य भावोंके श्रद्धानको सम्यग्दर्शन कहा है । किन्तु जीव अजीव आदिके लिये तत्त्वार्थ शब्दका प्रयोग हमें किसी भी श्वे० आगममें नहीं मिला। साथ ही तत्त्वोंकी सात संख्याका निर्देश भी उसमें नहीं है। उधर कुन्द-कुन्दके नियमसारमें' आप्त, आगम और तत्त्वोंके श्रद्धानको सम्यक्त्व कहा है । तथा आगमके द्वारा कथित पदार्थोंको तत्त्वार्थ कहा है। और भाव प्रामृत (गा० ९५) में स्पष्ट रूपसे नौ पदार्थों और सात तत्त्वोंका निर्देश किया है। ____३. त० सू १-८ में सत् संख्या आदि आठ अनुयोग बतलाये हैं। अनुयोगद्वार सूत्रमें नौ गिनाये हैं, जिनमें 'भाग' अधिक है। किन्तु षट्खण्डागमके जीवट्ठाणकी सत्प्ररूपणाके प्राथमिक सूत्रमें तत्त्वार्थ सूत्रकी तरह आठ ही अनुयोग गिनाये हैं। ४. मति आदि पाँच ज्ञानोंका वर्णन जैसा तत्त्वार्थ सूत्रमें है वैसा ही श्वेताम्बर आगमोंमें भी है और दि० षट्खण्डागमके वर्गणाखण्डके अन्तर्गत कर्म प्रकृति अनुयोग द्वारमें भी है । फिर भी एक बात उल्लेखनीय है। त० सू० (१-१३)में मति स्मृति संज्ञा चिन्ताको मतिज्ञानके नामान्तर कहा है। उक्त षटख० के कर्मप्रकृति में भी 'सण्णा सदी मदी चिंता चेदि ॥४१॥' लिखकर संज्ञा, स्मृति, मति और चिन्ताको मतिज्ञानका नामान्तर कहा है । किन्तु नन्दि सूत्रमें चिन्ताका नाम नहीं है । अतः उक्त सूत्र नन्दी सूत्रकी अपेक्षा षट्खण्डागमके ही उक्त सूत्रका ऋणी प्रतीत होता है। दि० सूत्र पाठमें 'भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणां ॥२१॥' पाठ है। षट्खण्डागमके उक्त कर्म प्रकृति अनु० में भी 'जं तं भवपच्चइयं तं देवणेरइयाणं ॥५४॥ ऐसा सूत्र है । उक्त सूत्र इस सूत्रका ही संस्कृत रूपान्तर जैसा प्रतीत होता है । श्वेताम्बर नन्दि सूत्र ७ तथा स्था० सू० (स्था० २, उ० १, सू० ७१) में भी 'देवाणं य नेरइयाणं य' लिखकर देवोंको नारकियोंसे पहले रखा है। किन्तु त० १. अत्तागमतच्चाणं हवेइ सम्मत्तं । ५। तेणदु कहिया हवंति तच्चत्था ॥८॥-नि० सा०। २. 'सत्संख्या क्षेत्रस्पर्शन-कालान्तर-भावाल्पबहुत्वंश्च' ॥८॥-त. सू० । 'से कि तं अणुगमे नवविहे पण्णते । 'तंजहा-संतपयपरूपणया, दव्वपमाणं च, खित्त, फुसणा य, कालो य अंतरं, भाग, भाव, अप्पाबहुमं चेव', अनु० सं० ८० । 'संतपरूवणा दनपमाणाणुगमो खेताणु० फोसणा० काला० अंतरा, भावा० अप्पाबहुगाणुगमो चेदि ॥७॥-षट्वं०, पु० १। ३. 'सन्नासई मई पन्ना सव्वं भाभिणिबोहिमं ।'-नन्दि० ।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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