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तत्त्वार्थविषयक मूलसाहित्य : २५२,
लिखा है कि कोई इस सूत्रको नित्यावस्थितानि, अरूपाणि ऐसे दो सूत्र मानते हैं । तथा 'नित्यावस्थितारूपाणि' ऐसा भी पाठ पाया जाता है ।
१४. ' अर्पितानपित सिद्धेः || ५ - ३१ । । ' जाता है ।
१५. ‘अशुभः पापस्य ।। ६४ ।।' हरिभद्रकी टीकामें यह सूत्र नहीं है लेकिन 'शेषं पापम्' ऐसा सूत्र है । सिद्धसेनकी टीका में 'अशुभः पापस्य' सूत्ररूपसे छपा । लेकिन टीका में ' ' शेषं पापम्' ही सूत्ररूपसे अभिमत मालूम होता है ।
इस सूत्रकी व्याख्यामें मतभेद पाया
१६. 'इन्द्रियकषायाव्रतक्रिया - ।। ६-६ ॥ सर्वत्र यही पाठ पाया जाता है । किन्तु सूत्रके भाष्यमें अव्रत का कथन पहले किया है । इस परसे, अव्रत कषा - येन्द्रियक्रियाः ' ऐसा भी चल पड़ा है । यद्यपि सिद्धसेन ने सूत्र और भाष्यकी अंसगतिको दूर करनेका प्रयत्न अपनी टीकामें किया है ।
१७. तत्त्वार्थाधिगम सूत्रकी टिप्पणवाली प्रतिमें सूत्र ॥६- २०|| के पश्चात् 'सम्यक्त्वं च ' ऐसा सूत्र है । दिगम्बर परम्परा इसे सूत्र मानती है ।
१८. 'दुःखमेव वा ।। ७-५ ॥ सूत्रकी टीकामें सिद्धसेनने लिखा है कि इसी सूत्रके 'व्याधिप्रतीकारत्वात् कण्डूपरिगतत्वाच्चाब्रह्म' तथा 'परिग्रहेष्वप्राप्तप्राप्तनष्टेषु कांक्षाशोको प्राप्तेषु च रक्षणमुपभोगेवावितृप्ति' इन भाष्य वाक्यों को कोई दो सूत्र रूप मानते हैं ।
१९. सूत्र ।।७ - २३ ।। की टीका में सिद्धसेनने लिखा है कि इस सूत्र के स्थानमें
कोई 'परविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीतागमनान ङ्गक्रीडातीव्रकामाभिनिवेशा' ऐसा सूत्र पढ़ते हैं । तथा कुछ लोग इसी सूत्रका पद विच्छेद परविवाहकरणं इत्वारिकागमनं परिगृहीतापरिगृहीतागमनं अनङ्गक्रीडा तीव्रकामाभिनिवेश' ऐसा करते हैं । उक्त सूत्र दिगम्बरीय पाठसे एक दम मिलता है । २०. टिप्पण वाली सूत्र प्रतिमें 'सचित्तनिक्षेपपिधान ॥ ७-३१ ॥ आदि सूत्र
नहीं है।
२१. टिप्पण वाली सूत्र प्रतिमें दसवें अध्यायके अन्तमें 'धर्मास्तिकायाभावात्' ये सूत्र है । दिगम्बर परम्परा भी इसे सूत्र मानती है ।
इस तरह भाष्यके होते हुए भी श्वे० सूत्र पाठमें जो इतने मत भेद पाये जाते
१. ' एवं पुण्यं कर्म विनिश्चित्य पापविनिश्चयायाह - शेषं पापमिति । - सि० टि०, भा० २, पृ० ७ ।
२. ' ततश्च ये भाष्यमेव कयाऽपि बुद्धया सूत्रीकृत्याधीयते । ' - वही, भा० २, पृ० ५५ ।
३. ' अन्ये पठन्ति सूत्रम् ।' - वही, भा० २, पृ० १०९ ।