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तत्त्वार्थविषयक मूल साहित्य : २५१ हैं । पुद्गलका स्वरूप बतलाते हुए उसके भेद, उसकी उत्पतिके कारण, पौद्गलिकबन्धकी योग्यता-अयोग्यता आदिका कथन है । अन्तमें सत्, द्रव्य, गुण, नित्य और परिणामका स्वरूप बतलाकर कालको भी द्रव्य बतलाया है ।
६. छठे अध्यायमें आस्रवतत्त्वका स्वरूप उसके भेद-प्रभेद और किन-किन कामोंके करने से किस किस कर्मका आस्रव होता है, उसका वर्णन है ।
७. सातवें अध्यायमें ब्रतका स्वरूप, उसके भेद-प्रभेद, लिये हुए व्रतोंको स्थिर करनेके लिये तदनुकूल भावनाएं, हिंसा आदि पाँच पापोंका स्वरूप, सप्त शील, सल्लेखना, तथा प्रत्येक व्रत और शीलमें संभाव्य अतिचार (दोष) का वर्णन करते हुए अन्तमें दानका स्वरूप और उसके फलमें तारतम्य होनेके कारण बतलाये हैं।
८. आठवें अध्यायमें कर्मबन्धके मूल हेतु बतलाकर उसके स्वरूप तथा भेदोंका विस्तार पूर्वक कथन करते हुए आठों कर्मोंके नाम, प्रत्येक कर्मकी उत्तर प्रकृतियाँ, प्रत्येक कर्मका स्थितिबन्ध, अनुभाग तथा प्रदेशबन्धका स्वरूप वगैरह बतलाया है।
९. नौवें अध्यायमें संवरका स्वरूप, संवरके हेतु, गुप्ति-समिति, दस धर्म, बारह अनुप्रेक्ष, बाईस परीषह, चरित्र और अन्तरंग तथा बहिरंग तपके भेद बतलाये हैं। अन्तमें ध्यानका स्वरूप, काल, ध्याता, ध्यानके भेद तथा पांच प्रकारके निर्ग्रन्थ साधुओंका वर्णन है।
१०. दसवें अध्यायमें केवल ज्ञानके हेतु, मोक्षका स्वरूप, मुक्तिके पश्चात् जीवके ऊवं गमनका दृष्टान्त पूर्वक सयुक्तिक समर्थन तथा मुक्त जीवोंका वर्णन है । संक्षेपमें यह तत्त्वार्थ सूत्रका विषय परिचय है। दो सूत्रपाठ
तत्त्वार्थ सूत्रके दो पाठ प्रचलित हैं। एक पाठ वह है जिसपर पूज्यपादने सर्वार्थ सिद्धि, और अकलंकदेवने अपना तत्त्वार्थवार्तिक रचा है। यह पाठ दिगम्बर परम्परामें प्रचलित है। दूसरा पाठ वह है जिसपर तथोक्त स्वोपज्ञ भाष्य रचा गया है । यह सूत्र पाठ श्वेताम्बर परम्परामें मान्य है। इन दोनों पाठोंमें जो अन्तर है वह नीचे दिया जाता है। _दोनों पाठोंके अनुसार दसों अध्यायोंकी सूत्र संख्या क्रमसे इस प्रकार हैप्रथम पाठ-३३ + ५३ + ३९ + ४२ + ४२ + २७+ ३९ + २६+४७ +९
___ =३५७ दूसरा पाठ-३५ + ५२ + १८+ ५३ + ४४ + २६ + ३४ + २६ + ४९ +७