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२५० : जैनसाहित्यका इतिहास
जैन दर्शन ज्ञानको ही प्रमाण मानता है । ज्ञान पांच हैं मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ज्ञान । प्रमाणके दो भेद हैं-प्रत्यक्ष और परोक्ष । मति और श्रुतज्ञान परोक्ष हैं क्योंकि ये इन्द्रियादिकी सहायतासे होते हैं। शेष तीनों ज्ञान प्रत्यक्ष हैं क्योंकि केवल आत्मासे ही उत्पन्न होते हैं। कुन्दकुन्दाचार्यने प्रवचनसारमें प्रत्यक्ष और परोक्ष भेदोंकी चर्चा की है किन्तु मति आदि ज्ञानोंकी चर्चा नहीं की है, केवल ज्ञानका ही विस्तारसे उपपादन किया है क्योंकि वही शुद्ध होनेसे उपादेय है। किन्तु तत्त्वार्थ सूत्रकारने सब जानोंका कथन किया है। मति ज्ञानकी उत्पतिके साधन, उनके भेद-प्रभेद, उनकी उत्पत्तिका क्रम, श्रुतज्ञानके भेद, अवधि ज्ञान और मनःपर्यय ज्ञानके भेद तथा उनके पारस्परिक अन्तर, पाँचों ज्ञानोंका विषय, उनमेंसे एक साथ एक जीवमें कितने ज्ञान रहना संभव है, उनमेंसे आदिके तीन ज्ञानोंके मिथ्या भी होनेका कारण, आदिका कथन हैं । अन्तमें नयोंके भेद गिनाये हैं।
२. दूसरे अध्यायमें जीवतत्त्वका कथन है। सबसे प्रथम जीवके स्वतत्त्व रूपसे पाँच भावोंको बतलाते हुए उनके भेदों का कथन है । फिर जीवके संसारी
और मुक्त भेद बतलाकर संसारी जीवोंके भेद-प्रभेदोंका कथन है। आगे संसारी जीवोंके होनेवाली इन्द्रियोंके भेद-प्रभेद, उनके विषय, संसारी जीवोंमें इन्द्रियोंका बटवारा, मृत्यु और जन्मके बीचकी स्थिति, जन्मके भेद, उनकी योनियाँ, जीवों में जन्मोंका विभाग, शरीरके भेद, उनके स्वामी, एक जीवके एक साथ संभव हो सकनेवाले शरीर, लिंगोंका विभाग तथा अन्तमें पूरी आयु भोगकर ही मरने वाले जीवोंका कथन है।
३. तीसरे अध्यायमें अधोलोक और मध्यलोक का वर्णन है । अधोलोकका वर्णन प्रारम्भ करते हुए सात पृथिवियां गिनाकर तथा उनका आधार बतलाकर उनमें बने नरकोंकी संख्या, उन नरकोंमें बसनेवाले नारकी जीवोंकी दशा तथा उनकी सुदीर्घ आयु आदि बतलाई है। मध्यलोकके वर्णनमें उस लोकका भौगोलिक वर्णन है, जिसमें हम रहते हैं। इस पृथ्वी पर वर्तमान द्वीपों, समुद्रों, पर्वतों और नदियों का वर्णन करके अन्तमें उसमें बसनेवाले मनुष्यों और तिर्यों की आयु भी बतलाई है। __४. चौथे अध्यायमें ऊर्ध्वलोकका वर्णन है उसमें देवोंके विविध भेदोंका, ज्योति मण्डलका तथा स्वर्ग लोकका वर्णन है।
५. पांचवें अध्यायमें जीवके सिवाय पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन छ द्रव्यों का वर्णन है । इनका वर्णन करते हुए प्रत्येक द्रव्यके प्रदेशोंकी संख्या, उनके द्वारा अवगाहित क्षेत्र, और प्रत्येक द्रव्यका कार्य आदि बतलाये