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२४८ : जेनसाहित्यका इतिहास आज तो तत्त्वार्य सत्रको जनोमें वही स्थान प्राप्त है जो हिन्दू धर्ममें भगवत गीताको इस्लाममें कुरानको और इसाई धर्ममें वाइबिलको प्राप्त है।
संस्कृतका आद्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थ सूत्रका एक सबसे बड़ा उल्लेखनीय महत्त्व यह है कि उसे जैन परम्परामें आद्य संस्कृत ग्रन्थ कहे जानेका सौभाग्य प्राप्त है। उससे पूर्व प्राकृत भाषामें ही जैन ग्रन्थोंकी रचना की जाती थी, उसी भाषामें भगवान महावीरकी देशना हुई थी और उसी भाषामें गौतम गणधर ने अंगों और पूर्वोकी रचना की थी। किन्तु जब देशमें संस्कृत भाषाका महत्त्व बढ़ा और विविध दर्शनोंके मन्तव्य सूत्र रूपमें निबद्ध किये गये तो जैन परम्पराके आचार्योका ध्यान भी उस ओर गया और उसीके फलस्वरूप तत्त्वार्थसूज्ञ जैसे महत्त्वपूर्ण सूत्रग्रन्थकी रचना हुई और इस तरहसे सूत्रकारने जैन वाङ्मयके क्षेत्रमें संस्कृत भाषाको प्रवेश कराकर संस्कृत भाषामें रचना करनेका द्वार खोल दिया।
रचना शैली-वैशेषिक दर्शनके सूत्रोंकी तरह तत्त्वार्थ सूत्र भी दस अध्यायोंमें विभक्त है । दोनोंकी सूत्र संख्यामें भी ज्यादा अन्तर नहीं है । दिगम्बर परम्पराके अनुसार तत्त्वार्थ सूत्रके सूत्रोंकी संख्या ३५७ और श्वे० परम्पराके अनुसार ३४४ है जब कि वैशेषिक सूत्रोंकी संख्या ३३३ हैं । वैशेषिक सूत्रोंमें तथा न्याय सूत्रोंमें भी तत्त्व ज्ञानसे मोक्षकी प्राप्ति मानी है और तदनुसार दोनोंमें अपने-अपने माने हुए पदार्थोका ही कथन है। किन्तु उस कथनमें आत्माके बन्धन, उसके निरोध और छुटकारेके लिये किये जानेवाले संयमका कथन नहीं है। किन्तु तत्त्वार्थ सूत्रमें उन सबका विस्तार पूर्वक कथन है। इस ऊपरी समानताके होते होते हए भी दोनोंमें उल्लेखनीय अन्तर भी है। वैशेषिक सूत्रोंमें अपने मन्तव्योंके समर्थनमें हेतु वादका आश्रय लिया गया है अर्थात् सूत्रोंमें अपने मन्तव्यको कहकर उनकी पुष्टिमें युक्तियाँ भी दी गई हैं। किन्तु तत्त्वार्थ सूत्रमें केवल सिद्धान्त का निरूपण है, पूर्व पक्ष उत्तर पक्ष जैसी चर्चाका उसमें लेश भी नहीं है। इस प्रकारके सूत्र ग्रन्थों में परिभाषाओंसे अनभिज्ञ व्यक्तिके लिये तत्वार्थ सूत्रोंका गहन प्रतीत होना भी स्वभाविक है किन्तु अर्थ गाम्भीर्य भी. उसका एक प्रमुख कारण हो सकता है।
विषय परिचय-वैशेषिक दर्शनके प्रारम्भमें कहा गया है कि द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव नामक पदार्थोंके तत्त्व ज्ञानसे मोक्षकी प्राप्ति होती है। अतः उसमें मुख्य रूपसे उक्त पदार्थोका विचार किया गया है । सांख्य दर्शनमें भी प्रकृति और पुरुषका वर्णन करते हुए प्रधान रूपसे जगतके मूल भूत पदार्थोका ही विचार है । इसी प्रकार वेदान्त दर्शन भी जगतके मूल भूत तत्त्व ब्रह्मकी ही प्रधान रूपसे मीमांसा करता है। इस तरह इन दर्शनोंमें शेयतत्त्वका