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________________ २४४ : जनसाहित्यका इतिहास दिया है कि ये पाँच शरीर संसारी जोवोंके होते हैं। और आगे ४९वें सूत्रके भाष्यमें औदारिक आदि संज्ञाओंके शब्दार्थका कथन किया है। सिद्धसेनगणिने अपनी टीकामें इस अप्रासंगिकताको चर्चाको शंकाके रूपमें उठाते हुए लिखा है-'यह भाष्य तो शरीर प्रकरण सम्बन्धी प्रथम सूत्र (३७)में युक्त होता । प्रकरणके अन्तमें उसके कहनेका किञ्चित् भी विशिष्ट प्रयोजन नहीं है।' इसका उत्तर देते हुए लिखा है-प्रकरणके अन्तमें कहनेका सत्य ही कुछ भी फल नहीं है क्योंकि वह असूत्रार्थ है। अतः आचार्यकी इस एक भूलको क्षमा करें। ____ इस तरहकी एक नहीं अनेक अनुपपतियाँ सूत्र और भाष्यकी एक कर्तृकता के सम्बन्धमें हैं । इसके सिवाय उस समयके जितने भी प्राचीन सूत्र ग्रन्थ वर्तमान हैं उनमेंसे किसी भी सूत्र ग्रन्थपर उसके रचयिताने कोई भाष्य या वृत्ति नहीं रची । पातञ्जल सूत्र, न्याय सूत्र, वैशेषिक सूत्र, वेदान्त सूत्र आदि सूत्रग्रन्थ इसके उदाहरण है। अतः भाष्य और सूत्रकी एक कर्तृकताके आधारपर सूत्रकारकी परम्पराका निर्णय नहीं किया जा सकता । उसके लिये तो तत्त्वार्थ सूत्रके सूत्रोंके माध्यमसे ही विचार करना उचित होगा । आगे हम तत्त्वार्थसूत्रके सम्बन्धमें विशेष प्रकाश डालेंगे। तत्त्वार्थ सूत्रको उत्पत्ति कथा तत्त्वार्थ सूत्रके आद्य टीकाकार पूज्यपाद स्वामीने सर्वार्थ सिद्धि नामक अपनी तत्त्वार्थ वृत्तिके प्रारम्भमें प्रथम सूत्रको उत्थानिकामें लिखा है कि 'कोई स्वहितैषी निकट भव्य किसी आश्रममें मुनियोंकी परिषदके मध्यमें विराजमान निग्रन्थाचार्यके पास गया और उनसे पूछा कि भगवान् ! आत्माका हित क्या है? आचार्यने उत्तर दिया-'मोक्ष'। तब पुनः उसने पूछा-मोक्षका स्वरूप क्या है और उसकी प्राप्तिका मार्ग कौनसा है ? इसीके उत्तरमें 'सम्यग्दर्शन ज्ञान चारिवाणि मोक्षमार्गः' सूत्र प्रवर्तित हुआ । १. 'ननु च शरीरप्रकरणप्रथमसूत्रे एतद् भाष्यं युक्तं स्यात् । इह तु प्रकरणान्ता भिधाने न किञ्चित् प्रयोजनं वैशेषिकमस्तीति । उच्यते तदेवमयं मन्यते तदेवेदमादि सूत्रमाप्रकरण परिसमाप्तः प्रपञ्चयते अथवा प्रकरणान्ताभिधाने सत्यमेव न किञ्चित् फलमस्त्यसूत्रार्थत्वादतः क्षम्यतामिदमेकमाचार्यस्येति ।' -सि० ग० टी०, भा० १, पृ० २११ ।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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