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२४० : जेनसाहित्यका इतिहास
चौथी और पाँचवी युक्तियोंके सम्बन्धमें भी अनेक बातें विचारणीय हैं और उनसे उक्त समस्या सुलझनेके बजाय उलझ जाती है ।
१. यद्यपि भाष्य में 'उपदेक्ष्यामः । जैसे प्रथम पुरुष परक निर्देश भी हैं, किन्तु उसमें अन्य पुरुष परक निर्देशोंकी ही बहुतायत है । यथा - ' - 'आद्ये परोक्षम् सूत्रके भाष्य में लिखा है ।। १- ११॥ आद्ये सूत्रक्रम प्रामाण्यात् प्रथम द्वितीये शास्ति ।' यहाँ 'शास्ति' अन्य पुरुष परक निर्देश है । इसकी टीका में इस असंगतिका परिहार करने के लिए सिद्धसेन गणिको यह लिखना पड़ा ग्रन्थकारने अपनेको सूत्रकार और भाष्यकारके रूपमें विभाजित करके 'शास्ति' ऐसा कहा है । सूत्र (१-२०) के भाष्यमें लिखा है - अत्राह - मतिश्रुतयोस्तुल्यविषयत्वम्' द्रव्येष्वसर्व पर्यायेषु ।
सूत्र (१-३५) के भाष्यमें - 'आद्य इति सूत्रक्रमप्रामाण्यान्नैगममाह । इसी सूत्रके भाष्यमें आगत कारिकाओंके लिए भी 'आह च' अन्यपुरुष परक निर्देश है । उसकी टीका में भी सिद्धसेन गणिने उक्त प्रकारसे समाधान किया । और भी देखिये
'अत्राह — उक्तं भवता जीवादीनि तत्त्वानि' (२- १) । इसकी टीकामें सिद्धसेन गणिजीने लिखा है - 'किं पुनरत्र प्रयोजनं यदयमपहायाध्यायप्रकरणसम्बन्धी सूत्रकृतमेव सम्बन्धमाविश्चकार भाष्यकार ।' ये शब्द भी ध्यान देने योग्य हैं ।
इस प्रकारके अन्य पुरुष परक निर्देशोंकी ही भाष्यमें बहुतायत है । अव रहे वक्ष्यामः' जैसे प्रथम पुरुष परक निर्देश । सो जिन सूत्रोंके व्याख्याता सूत्रकारसे भिन्न है उसकी व्याख्याओंमें भी इस प्रकारके प्रथम पुरुष परक निर्देश पाये जाते हैं । उदाहरण के लिए पातञ्जल सूत्रोंके व्यास भाष्य, तत्त्वार्थ सूत्रकी टीका
१. 'शास्तीति' च ग्रन्थकार एव द्विधा आत्मानं विभज्य सूत्रकार भाष्यकाराकारेणैवमाह - शास्तीति सूत्रकार इति शेषः । - सि० ग० टी०, भा० १, पृ० ७२ ।
२. 'आह चेत्यात्मानमेव पर्यायान्तरवर्तिनं निर्दिशति' - वही, पृ० १२७ । ३. ' स च वितर्कानुगतो विचारानुगत आनन्दानुगतोऽस्मितानुगत इति उपरिष्टात् निवेदयिष्यामः । ' ( सूत्र - १ । 'यथाक्रममेषामनुष्ठानं स्वरूपं च वक्ष्यामः (२-२९, ३० ) । व्या० भा० ।
४. 'तस्य स्वरूप मनवद्यमुतरत्र वक्ष्यामः । एतेषां स्वरूपं लक्षणतो विधानतश्च विस्तरेण निर्देक्ष्यामः । सर्वार्थ ० पृ० २ । अवसर प्राप्तं बन्धं व्याचक्ष्महे - प्रकरण सामर्थ्यात् भावबन्धं ब्रूमः । - त० वा०, ०५६१ ।