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________________ तत्त्वार्थविषयक मूल साहित्य : २३३ यः कुन्दकुन्दनामा नामान्तरितो निरुच्यते कश्चित् । ज्ञेयोऽन्य एव सोऽस्मात् स्पष्टमुमास्वातिरिति विदितात् ॥ टिप्पणी-तहि कुन्दकुन्द एवैतत् प्रथम कर्तेति संशयापहाय स्पष्टं ज्ञापयामः यः कुन्दकुन्दनामेत्यादि । अयं च परतीथिकैः कुन्दकुन्द इडाचार्यः पद्मनन्दी उमास्वातिरित्यादि नामान्तराणि कल्पयित्वा पठ्यते सोऽस्मात् प्रकरणकर्तुरुमास्वातिरित्येव प्रसिद्धनाम्नः सकाशादन्य एव ज्ञेयः किं पुनः पुनर्वेदयामः ।" ___इसमें कहा है. कुन्दकुन्द, इडाचार्य ( एलाचार्य ) पचनन्दि और उमास्वाति ये एक ही व्यक्तिके नाम कल्पित करके जो लोग इस ग्रन्थका असली अथवा आद्यकर्ता कुन्दकुन्दको बतलाते हैं वह ठीक नहीं, वह कुन्दकुन्द हमारे इस तत्त्वार्थ सूत्रका प्रसिद्ध उमास्वातिसे भिन्न ही व्यक्ति है । ___ इससे प्रकट होता है कि दिगम्बर लोग कुन्दकुन्दको तत्त्वार्थ सूत्रका असली आद्य कर्ता मानते थे। किन्तु कुन्दकुन्दका एक नाम उमास्वाति भी था और इस तरह कुन्दकुन्द और उमास्वाति एक ही व्यक्ति थे, ऐसी मान्यताका कोई संकेत दिगम्बर परम्परामें हमारे देखने में नहीं आया। ___ इस तरह दिगम्बर परम्परामें तत्त्वार्थ सूत्रके कर्ताके रूपमें उमास्वाति गृद्धपिच्छाचार्यका उल्लेख, गृद्धपिच्छाचार्य कुन्दकुन्दके शिष्यके रूपमें श्रवणवेलगोला आदिके शिलालेखोंमें ही मिलता है। ___ श्वेताम्बर परपम्परामें तत्त्वार्थ सूत्रके कर्तृत्वको लेकर तो मामूली सी भ्रान्ति फैली है। किन्तु उसके कर्ता आचार्य उमास्वातिकी स्थिति अवश्य ही चिन्त्य है । श्वेताम्बर सम्प्रदायकी पट्टावलियोंमें सबसे प्राचीन कल्पसूत्र स्थविरावली और नन्दिसूत्र स्थविरावली हैं। उनका संकलन वी० नि० सं० ९८० (वि० सं० ५१०) में किया गया माना जाता है । किन्तु उनमें उमास्वाति का नाम नहीं है । नन्दिसूत्र में तो वाचकाचार्योंकी वंशावली दी हुई है, फिर भी उसमें न उमास्वातिका नाम है और न उनके गुरुजनोंमेंसे ही किसीका नाम है, जिन्हें उमास्वातिने वाचक मुख्य, महावाचक और वाचकाचार्य बतलाया है। पिछले समयकी रची हुई पट्टावलियोंमें यद्यपि उमास्वातिका नाम आता है किन्तु उनमें भी एकवाक्यताका अभाव है। दुषमाकाल श्रमणसंघ स्तोत्र • (वि० की तेरहवीं शताब्दी) में हारिल और जिनभद्रके बाद उमास्वातिका नाम आता है। और जिनभद्रगणिने विशेषावश्यक भाष्य वि० सं० ६६६ में पूर्ण किया था। १. "सिरि सच्चमित्त हारिलं जिणभद्द वंदिमो उमासाई ।' -पट्टा० स०, पृ० १६ ।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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