________________
२३२ : जनसाहित्यका इतिहास उमास्वातिको ही बतलाया है, कुन्दकुन्दाचार्यको नहीं। इस तरह उक्त शिलालेखों से पूर्व दिगम्बर परम्परामें उमास्वातिको तत्त्वार्थ सूत्रका कर्ता बतलानेवाला कोई उल्लेख हमें नहीं मिलता । इसपरसे यह सन्देह होसकता है कि गृद्धपिच्छाचार्यका का नाम उत्तरकालमें श्वेताम्बर परम्परामें तत्वार्थसूत्रके कर्ताके रूपमें प्रसिद्ध भाष्यकार उमास्वातिके साथ तो नहीं जोड़ दिया गया है । दिगम्बर परम्पराके तो उक्त प्राचीन उल्लेख गृद्धपिच्छ आचार्यको ही तत्त्वार्थ सूत्रका कर्ता बतलाते हैं।
किन्तु इस सम्बन्धमें एक बात और भी उल्लेखनीय है । यद्यपि कुन्दकुन्दाचार्यका उल्लेख तो प्राचीन शिलालेखमें मिलता है परन्तु पद्मनन्दिका, जो कोण्डकुन्दपुरके निवासी होनेके कारण कुन्दकुन्दाचार्यके नामसे ख्यात हुए, उल्लेख भी नौवीं-दसवीं शताब्दीके साहित्यमें ही प्रथम बार मिलता है। इस तरह कुन्दकुन्द और तत्त्वार्थसूत्र कर्ता गृपिच्छाचार्य ये दोनों लगभग समकालमें ही साहित्यिक उल्लेखोंमें अवतरित होते हैं, यद्यपि ये दोनों ही प्राचीन हैं।
शिलालेखों तथा टीकाकार जयसेन और श्रुतसागरके उल्लेखोंसे यह स्पष्ट है कि कुन्दकुन्दका एक नाम गृपिच्छाचार्य भी था। शायद इसीसे 'अर्हत्सूत्रवृत्ति नामक तत्त्वार्थसूत्रकी टीकामें, जिसके रचयिता भट्टारक राजेन्द्रमौलि हैं, तत्त्वार्थ सूत्रको स्पष्टतया कुन्दकुन्दाचार्यकी कृति कहा है। यह राजेन्द्रमौलि मूल संघ सरस्वतीगच्छके भट्टारक तथा सागत्यपट्टके अधीश्वर थे। इनका समय ज्ञात नहीं है।
श्री पं० जुगल किशोरजी मुख्तारने उक्त बात प्रकट करते हुए तत्त्वार्थसूत्रके एक श्वेताम्बर टिप्पणीकारकी टिप्पणी भी इस सम्बन्धमें प्रकाशित की थी। टिप्पणीके अन्तमें तत्त्वार्थसूत्रके कर्तृत्वविषयमें दुर्वादापहार नाम कुछ पद्य देते हुए लिखा है१. यह ग्रन्थ बम्बईके ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवनमें है। इसका प्रारम्भ
इस प्रकार होता है-'अथ अर्हत्सूत्रवृत्तिमारभे। तत्रादौ मंगलाद्यानि मंगलमध्यानि मंगलान्तानि च शास्त्राणि प्रथ्यन्ते। तदस्माकं. विघ्नघाताय अस्मदाचार्यों भगवान् कुन्दकुन्दमुनिः स्वेष्टदेवतागुणोत्कर्षकीर्तनपूर्वक तत्स्वरूपवस्तुनिर्देशात्मकं च शिष्टाचारविशिष्टेष्टजीववाद सिद्धान्तीकृत्य तद्गुणोपलब्धिफलोपयोग्यवन्दनानुकूलव्यापारगर्भ मंगलमाचरतिअन्तमें लिखा है-'मूलसंघबलात्कारगणे गच्छे गिरा शुभे । राजेन्द्रमौलिभट्टार्कः सागत्यपट्टराडिमां । व्यरचीत् कुन्दकुन्दाचार्यकृत सूत्रार्थ दीपिकाम्'
अनेकान्त, वर्ष १, पृ० १९९ ।। २. अनेकान्त, वर्ष १, पृ० १९८ ।
-
-
---
--
--...